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त्रयविंशति परिच्छेद
 


रोक कर खड़ा हो गया, और तत्काल कटिदेश से बन्दूक निकाल कर पादरी महाशय को दिखाई ॥

अविलाइनो--'सावधान ! तुम लोगों में से जिसने पहरे के पदातियों को पुकारा अथवा कोई अपने स्थान से हिला, तो कुशल नहीं । अरे मूर्ख पुंगवो ! तनिक तुमको बुद्धि भी है कि निरे गौखे ही हो, भला यह नहीं समझते कि यदि मुझे सिपाहियों का भय होता, अथवा मैं भाग जाना चाहता, तो आप आकर उपस्थित होता, और द्वार पर प्रहरियों को नियत करा देता,कदापि नहीं ! मैं बद्ध होने पर संतुष्ट हूँ परंतु यदि मुझे बलात् बांधना चाहते तो कदापि संभव न था । मनुष्य की यह सामर्थ्य नहीं कि अबिलाइनों को पकड़ सके परंतु न्याय के निमित्त उसका परतंत्र होना आवश्यक था, इसलिये वह स्वयं आकर उपस्थित हुआ। क्या आप लोग अबिलाइनो को ऐसा वैसा मनुष्य समझे हुये हैं कि पुलिस वालों से मुख छिपाता फिरे, अथवा एक एक कौड़ी के लिये लोगों का जीवन समाप्त करने का अनुरक्त हो । राम ! राम !! अविलाइनों ऐसा नीचा शय नहीं है। मानलिया कि मैंने डाकुओं की जीविका ग्रहण की परंतु इसके बहुत से कारण हैं।

अंड्रियास (हाथ मलकर)---'ऐ परमेश्वर ये बातें भी संभव हैं' ।

जिस समय अबिलाइनों सम्भाषण कर रहा था, सब लोग खड़े थर्राते थे, उसके चुप हो जाने पर भी आयतन में देर तक सन्नाटा रहा । वह आयतन में अत्यंत उमंगपूर्वक टहल रहा था और प्रत्येक व्यक्ति उसकी ओर आश्चर्य और भय से देखता था । इस बीच रोजाबिला ने आखें खोली और उसकी दृष्टि अबिलाइनो पर पड़ी।

रोजाबिला---'ईश्वर पनाह ! यह अब तक यहां उपस्थित