उसके आते ही सब लोग इस रीति से चिल्ला उठे कि सम्पूर्ण आयतन गूँज उठा। रोजाबिला अबिलाइनों के पद सन्निकट अचेत होकर गिर पड़ी और अपर स्त्रियाँ मन्त्र पाठ करने और परमेश्वरका ध्यान करने लगीं। परोजी और उनके सहका- रियों की क्रोध, भय और आश्चर्य से बुरी गति थी। और जितने मनुष्य वहाँ विद्यमान थे सब को अपने चैतन्य और सुधि के विषय में संदेह था। यदि बुद्धि ठिकाने थी, तो अबिलाइनों की वह अपने उसी ठाट और उसी परिच्छद से कटिदेश को तुपक और यमधार से सज्जित किये डाब में करवाल डाले, अपनी स्वभाविक भोंडी आकृति से निश्शंक खड़ा था। उस समय आपका स्वरूप चित्र उतारने योग्य था, उत्तमता पूर्वक कोई आकार सुगठित और रम्य न था। मुख देखिये तो एक कल पर स्थिरता ग्रहण करता हो न था। कम्पास की सूचिका समान कभी पूर्व कभी पश्चिम, भृकुटि युगल आँखों पर इस प्रकार लटकी पड़ती थी, जैसे वर्षाकाल में किसी अकिंचन व्यक्ति की झोपड़ी। ऊपर का ओष्ठ आकाश का समाचार लाता था तो अधोभाग का रसातल का, दक्षिणाक्ष पर एक बड़ी सी पट्टी लगी हुई थी, और वाम नेत्र शिरमें घुसा हुआ था। इस भयानक स्वरूप से वह कतिपय क्षण पर्यन्त चारो ओर दृष्टिपात करता रहा, फिर महाराज की ओर जा सिंहके समान गर्ज कर कहने लगा महाराज आप ने अबिलाइनो को स्मरण किया था, लीजिये वह प्रस्तुत है, और अपनी पत्नी को बिदा कराने आया है। अंड्रियास अत्यन्त भय पूर्वक उसकी ओर देखा किये कठिनता से यह शब्द उनकी जिव्हासे निकले 'यह कदापि सत्य नहीं हो सकता, मैं निस्सन्देह स्वप्न देख रहा हूँ।' उस समय पादरी गाञ्जेगाने पहरे के पदातियों को पुकारा और लपक कर द्वारकी ओर जाना चाहा, अविलाइनो दरवाजा
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वेनिस का बाँका
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