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एकाविंशति परिच्छेद
 

पहला कर्मचारी―'और मैं भी सहस्त्र स्वर्णमुद्रा प्रदान करने के लिये शपथ करता हूँ और कहता हूँ कि फ्लोडोआर्डो उसको अवश्य पकड़ लावेगा'॥

अंड्रियास―'और उसे जीवित अथवा उसका शिर मेरे सम्मुख लाकर उपस्थित करेगा॥"

कारटेराइनो―'महाशयो! आप लोग इस के साक्षी हैं- आइये महाशय हाथ मारिये, एक सहस्र स्वर्णमुद्रा'॥

पहला कर्मचारी―(हाथ मार कर) 'हों चुकी॥"

काण्टेराइनों―'मैं आपकी इस कृपा और वदान्यता को देखकर आप को धन्यबाद प्रदान करता हूँ―कि आपने एक सहस्र स्वर्णमुद्रायें व्यर्थ मुझको प्रदान कीं, अब लियाजाती कहाँ हैं, मेरी हो चुकीं। इसमें संदेह नहीं कि फ्लोडोआर्डो बहुत सावधान और पटुव्यक्ति है परन्तु अविलाइनों का पक- ड़ना खेल नहीं वह ऐसा धूर्त और काइयाँ है कि परमेश्वर पनाह! महाशय के छक्के छोड़ा देगा, देखिये यह आपही कुछ काल में ज्ञात हो जाता है॥

पादरीगाञ्जेगा―'अंड्रियास से और पृथ्वीनाथ क्या आप यह भी बतला सकते हैं कि फ्लोडोआर्डो के साथ पुलीस के युवक जन भी हैं?॥'

अंड्रियास―'नहीं, वह अकला है, लगभग चौवीस घंटे होते है कि वह अविलाइनो को ढूँढने के लिये गया हुआ है।'

गाञ्जेगा―(काण्टेराइनों से मंद मुसकान पूर्वक) महोदय! ये सहस्त्र स्वर्णमुद्रायें आपको मुबारक।

काण्टेराइनों―'सादर प्रणिपात पूर्वक जब आपके मुखार- बिन्द से ऐसा निकला है तो मुझे अपने सफल अथवा कृत कार्य होने में तनिक भी संशय नहीं॥'

मिमो―'अब तनिक मुझे स्थिरता प्राप्त हुई, और मेरी