पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/१५

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कानूनगोई की परीक्षा पास करने का निश्चय किया और तदनुसार सन् १८८६ ई॰ में यह परीक्षा भी पास कर ली। दूसरे वर्ष आप कानूनगो के स्थायी पद पर नियुक्त कर दिए गए। तब से १ नवम्बर सन १९२३ ई॰ को पेंशन लेने तक आप समय समय पर रजिस्ट्रार कानूनगो, नायब सदर कानूनगो और गिर्दावर कानूनगो आदि कई पदों को सुशोभित करते रहे। अन्तमें पाँच साल तक सदर कानूनगो के पद पर भी आप रहे। पेंशन लेने के अनन्तर मार्च सन १९२४ ई॰ से आप हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर का कार्य कर रहे हैं। यहाँ आप वेतन नहीं लेते केवल 'औनोरेरियम पर ही अपना निर्वाह करते हैं।

जैसा ऊपर लिखा जा चुका है। आपके पितृव्य श्रीमान् पं॰ ब्रह्मासिंह जी उपाध्याय एक सदाचार निष्ठ विद्वान् थे। आप की साहित्य में भी पूर्ण गति थी। उन्होने इन्हें साहित्य में भी अच्छी शिक्षा दी थी। उस समय निजामाबाद में सिख संप्रदाय के अनुगामी एक साधु श्रीयुत बाबा सुमेर सिंह जी साहिबजादे रहते थे जो मातृभाषा के प्रसिद्ध कवि और विद्वान् हो गए हैं। इनके यहां भारतेंदु बा० हरिश्चन्द्रजी की चन्द्रिका तथा 'कविवचन सुधा' नामक पत्र बराबर आते थे। हिन्दी भाषा का इनका पुस्तकालय भी अच्छा था। यहीं उपाध्याय जी को, जिनपर बाबाजी बड़ा कृपा रखते थे, भाषा ग्रंथ देखने तथा पत्र के पढ़ने का विशेष अवसर मिलता था जिनके परिशीलन से उनके हृदय में मातृभाषा के प्रति प्रगाढ़ अनुराग उत्पन्न हो गया और वे स्वयं ग्रन्थ रचना के लिए कटिबद्ध हो गए।

उपाध्यायजीने मदरसों के डिप्टी इंस्पेक्टर बा॰ श्याममनोहरदाल के आदेशानुसार पहिले पहल 'वेनिस का बाँका'