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विशंति परिच्छेद
 

समझते कि जिसके शिर पर सींग होती है वह चाहे सारे संसार को दिखाई दे पर स्वयं उसे दिखलाई नहीं देती। परन्तु हाँ इस बातको मैं भी स्वीकार करता हूँ, कि अब बिलम्ब करना उचित नहीं तत्काल इस कार्य को कर ही डालना युक्ति संगत है।

फलीरी―मित्र यह तुम सत्य कहते हो अब सम्पूर्ण सामान एकत्रित है, जितना शीघ्र प्रहार किया जाय उतना ही उत्तम है'।

परोजी―'इसके अतिरिक्त एक कारण यह भी है कि इस समय प्रजा, "जो अंड्रियास से अप्रसन्न है और हमारी पृष्ट पोषक है, बहुत प्रसन्न होगी, यदि आज ही यह कार्य प्रारम्भ हो जाय। यदि इसमें और विलम्ब हुआ तो उनका प्रज्वलित क्रोध शान्त हो जायगा, और फिर वह लोग हमारे गँव के न रहैंगे'।

काण्टेराइनो―'तो फिर इस बात की तत्काल मीमांसा हो जानी चाहिये। मेरे परामर्शानुसार कल्ह का दिवस अतीवोत्तम है, महाराज को तो मेरे भरोसे छोड़िये। उनके ठिकाने लगाने की मैं प्रतिक्षा करता हूँ फिर चाहे और जो कुछ हो, परन्तु इसका दो ही परिणाम होगा, अर्थात् या तो हम लोग सम्पूर्ण प्रबन्ध को उलट पलट कर अपनी आपदा और क्लेश से स्वातन्त्र्य लाभ करेंगे, या आपही इस असार सन्ताप स्वरूप संसार से सीधे परलोक की यात्रा करेंगे।'

परोजी―मेरी यह अनुमति है कि हमलोग निमन्त्रण में निरस्त्र होकर कभी न जाँय।

गाञ्जेगा―'हाँ भाई इस समय अच्छा विषय स्मरण कराया, सुना है कि पुलीस के सकल उच्च कर्मचारी भी सतर्कता पूर्वक निमंत्रित किये गये हैं।