कारियोंका समाचार श्रवण करना चाहिये। ज्यों ही परोजी को फ्लोडोआर्डो के आगमन की बात ज्ञात हुई, उसने तत्काल अपने सुहृदां पर जो नियमानुसार पादरी गाञ्जेगा के आगार में एकत्रित थे उसके प्रत्यागमन का भेद प्रगट किया।
परोजी। "अहा! हा! हा!! मित्रवरो! आज तो पौ बारह है, चैन ही चैन दीखता है, मंगल ही मंगल है, भाई परमेश्वर की शपथ मैं तो वस्त्रों में फूला नहीं समाता। अपने भाग्य के बल बल जाइये, अहा! हमलोग भी कैसे सद्भाग्य हैं, पक्का समाचार मिला है कि आज फ्लोडोआर्डो यात्रा करके वापस पाया, अबिलाइनो को उसके पीछे लगाया ही गया है, बस समझ जाइये"।
गाञ्जेगा―"यह तो सब ठीक है, पर फ्लोडोआर्डो बड़ा ही चालाक है, एक ही काइयाँ है, मेरी राय तो यों है कि यदि वह हम लोगों का सहकारी हो जाता तो उत्तम था क्योंकि उस पर शस्त्र प्रहार सफल होना तनिक दुस्तर व्यापार है"।
फ़लीरी―'जहाँ तक मुझे ज्ञात है, मैं कह सकता हूँ कि रोजाबिला का मन मिलिन्द भी उसके स्नेह-जल जात- कोष में बद्ध है।
परोजी―'अजी महाशय! कहाँ आपका ध्यान है, आगामी दिवस पर्यंत धैर्य्य धरिये फिर चाहे वह शैतान की मातृस्व- सापर क्यों न मोहित हो, इस बीच में अविलाइनो उसका कार्य समाप्त कर चुकेगा'।
कान्टेराइनो―'भाई मुझे तो आश्चर्य इस बात का है कि यद्यपि मैंने फ्लारेन्स में पूर्ण अनुसन्धान किया, पर कुछ न ज्ञात हुआ कि यह फ्लोडोआर्डो कौन है, किसका आत्मज है, कहाँ रहता है। मेरे पास पत्र आये हैं, उनसे केवल इतना