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एकोनविंशति परिच्छेद
 

अच्छा, रोजाबिला बताओ कि तुम वास्तव में इनसे प्रीति करती हो?।

रोजाबिला ने अपना एक कर तो नृपत्ति महाशय की ग्रीवा में पड़ा रहने दिया, और द्वितीय कर से फ्लोडोआर्डो का कर ग्रहण कर अत्यन्त प्यार से अपने हृदय पर रक्खा, परन्तु इस पर भी फ्लोडोआर्डो को धैर्य्य न था, क्योंकि ज्यों हीं उसने नृपति महाशय का प्रश्न श्रवण किया, उसका मुख निस्तेज और पीत हो गया। यद्यपि कि उसने अपना हाथ रोजाबिला के करकमलों में दे दिया, पर एक बार अपना शिर इस रीति से हिलाया जैसे किसी को संशय हो, और रोजाबिला की ओर परमानुराग से अवलोकन करने लगा। अंड्रियास धीरे से रोजाविला से पृथक् हो गये, और कुछ काल तक आयतन में शोकितों का सा स्वरूप बनाये टहला किये। रोजाबिला वहीं एक पर्य्यङ्क पर बैठ कर रुदन करने लगो, और फ्लोडोआर्डो अत्यन्त असन्तोष पूर्वक महाराज के वाक्य की प्रतीक्षा करने लगा।



एकोनविंशति परिच्छेद।

कुछ काल तक सन्नाटे कासा समा रहा, और प्रत्येक व्यक्ति अपने विचारों में मग्न था। अंड्रियास की चेष्टा से सिद्ध होता था कि वह फ्लोडोआर्डो के लिये कोई काठन कार्य्य निर्धारण कर रहे हैं। उस समय फ्लोडोआर्डो और रोजाबिला की यही अभिलाषा थी कि जो वाद विवाद उपस्थित है किसी प्रकार समाप्त हो, परन्तु इसी के साथ उनको यह भी