फ्लोडोआर्डो ने इसका कुछ उत्तर न दिया॥
रोजाबिला―"क्यों महाशय! तो आप न क्षमा कीजियेगा आप अत्यन्त कठोर ज्ञात होते हैं"॥
फ्लोडोआर्डो ने उसका स्वरूप देख कर बनावट से मुस- करा दिया, परन्तु अवलोकन करने से उसके मुख से स्पष्ट आन्तरिक दुःख का विकास होता था। रोजाबिला ने अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाया॥
रोजाबिला―"क्यों आप स्वच्छ हृदय से मुझसे हाथ न मिलाइयेगा, और अपने हृदय से सब बातों को न भुलाइयेगा?"
फ्लोडोआर्डो―"राजकन्यके भुलाना? कदापि नहीं? कदापि नहीं? आपके एक एक शब्द का चिन्ह मेरे हृदय पर ऐसा हो गया है कि मरणकाल पर्यंत न मिटेगा, हाय! मैं उन बातों को कैसे भूल सकता हूँ जिससे मेरा मर्म वेध हुआ है, मैं उस वृत्तान्त को जो आपके और मेरे स्नेह का साक्षी है कथमपि भूल नहीं सकता! उसका प्रत्येक भाग अनमोल और अद्वितीय है। रहा क्षमा करना (रोजाबिला का करकमल सादर चुम्बन कर) परमेश्वर करता कि प्यारी तुमने मुझे वास्तव में अधिक संताप से संतप्त किया होता कि मैं तुमको क्षमा करता पर खेदका विषय है कि इस समय मैं तुमको क्या क्षमा करूं"॥
इतने कथोपकथन उपरांत दोनों कुछ काल पर्यंत मौन रहे, अंत को रोजाविला ने फिर बात छेड़ी॥
रोजाविला―"इस ओर तो आप बहुत दिनों तक बाहर रहे, क्या दूर की यात्रा की थी?"॥
फ्लोडोआर्डो―"जी हाँ"॥
रोजाबिला―"और आनन्द भी पूर्ण प्राप्त हुआ?"॥
फ्लोडोआर्डो―"पूर्ण, जहाँ कहीं जाता था रोजाबिला की प्रशंसा सुनता था"॥