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पञ्चदश परिच्छेद
 

करूँगा परन्तु इस नियम के साथ कि तुम अभी वेनिस से निकल जावो। यदि वेनिस को दश लक्ष स्वर्ण मुद्रायें भी देनी पड़ेंगी, तो वह अपना लाभ समझेगा क्योंकि उसकी वायु तुम्हारे विषमय श्वास से परिष्कृत हो जायगी।

अविलाइनो―"सच कहो! तुम्हारे निकट मानो दश लक्ष मुद्रा बहुत है, अभी मैंने पँच लक्ष स्वर्ण मुद्रा पर तुम्हारे दोनों मित्र लोमेलाइनो और मानफ्रोनके बध करने का बीड़ा लिया है! यदि रोजाविला को मुझे अर्पण करो तो मैं अभी इस कर्म से हाथ उठाता हूँ"॥

अंड्रियास―"हा! दुष्टात्मा अभागे! तेरे ऊपर परमेश्वर का कोप भी नहीं होता"॥

अबिलाइनो―"अच्छा तो ज्ञात हुआ कि आप मेरे कथन को न स्वीकार कीजियेगा, स्मरण रखिये कि साठ दण्ड के बाद मानफ़रोन और लोमेलाइनो जलचरों के भक्ष्य होंगे। बस अबि- लाइनो ने कह दिया"॥

यह कहकर अबिलाइनो ने अपनी बगल से एक पिस्तौल निकाली और उसे अंड्रियाल के मुख पर छोड़ दीं। अंड्रियास बारूद के धूम्र और पिस्तौल के अचाञ्चक छूटने से व्यस्त होकर हटगये और एक सज्या पर गिर पड़े। परन्तु कुछ काल के बाद जब उनको चेतना हुई तो वह अपने स्थान से बेग से उठे, इसलिये कि सिपाहियों को पुकारें और अविलाइनो को पकड़वायें परन्तु अविलाइनो इतने समय में अन्तर्हित हो गया था॥

उसी दिन सन्ध्या-समय परोज़ी, और उसके मित्र, पादरी गान्जे़नाके प्रशस्त प्रासाद में एकत्र थे, पात्रों में भाँति भाँति के व्यञ्जन और पदार्थ भरे हुए थे और मदपान उमंग से हो रहा था। प्रत्येक व्यक्ति प्रलाप में उन्मत्त था। पादरी गान्जे़गा