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पञ्चदश परिच्छेद
 

करता हूँ कि प्रगट में मेरे जैसे कर्म हैं उनसे निस्सन्देह यही आशा हो सकती है कि कोई मुझे हृदय में अच्छा न समझता होगा पर यह बात पक्की है कि हम और तुम दोनों एक ही मार्ग पर गमन कर रहे हैं, क्योंकि वेनिस में इस समय हमीं दो बड़े व्यक्ति हैं, तुम अपने ढङ्ग पर और मैं अपने ढङ्ग पर"॥

उसके इस निश्शंक संभाषण पर नृपति महाशय को बड़ी हँसी आई॥

अबिलाइनो―"न न न महोदय मेरे कथन को असत्य समझ कर न हँसिये, मान लिया कि मैं डाकू हूँ, पर मैं महाराज की समानता निस्सन्देह कर सकता हूँ, मेरे निकट यह कोई महत्व की बात नहीं है कि मैं अपने को ऐसे व्यक्ति के तुल्य कहता हूँ जो मेरे अधिकार में है और इस लिये मेरे अधोभाग में उसका संस्थान है"॥

अब नृपति महाशय इस रीति से उठकर खड़े हुये जैसे उनकी इच्छा निकल भागने की हो। इस पर अबिलाइनों ने असभ्य रीति से अट्टहास किया और उनका पथावरोध कर कहा "ऐसी शीघ्रता नहीं, क्योंकि संयोग से कभी दो ऐसे बड़े लोग ऐसे संकीर्ण और संकुचित स्थान में जैसी यह कोठरी है एकत्र होते हैं। तुम जहाँ हो वहीं ठहरे रहो, अभी तुमसे कुछ और बातें करनी हैं"॥

अंड्रियास―(अत्यन्त गंभीरता से) "सुन ऐ अबिलाइनो परमेश्वर ने तुझमें योग्यता कूट कूट कर भरी है फिर तू उन्हें इस प्रकार क्यों व्यर्थ व्यय करता है। मैं तुझसे सत्यता पूर्वक बचन बद्ध होता हूँ, कि यदि तू उस पुरुष का नाम बतला दे जिसने कुनारी का बध कराया, अपनी जीवनवृत्ति से घृणा करे और इस राज्य की सेवा स्वीकार करे, तो मैं तेरे अपराधों को क्षमा कर दूँ और अगत्या तेरा सहायक रहूँ यदि यह भी