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चतुर्दश परिच्छेद
 

तक कि अब परोजी, मिमो, कांटेराइनों और फलीरी को जो इस भयंकर विलव के अग्रगण्य थे अपने कार्य्य के सिद्ध होने के विषय में कुछ समाधान और विश्वास होता जाता था और वे पादरी गान्जेगा के प्रासाद में प्रायः एक- त्रित होकर वेनिस की क्रान्ति और राज्य परिवर्तन के विषय में बहुत सी युक्तियाँ सोचते और उन पर विवाद और कथनोप- कथन करते थे, परन्तु जितनी युक्तियाँ सामने आती थीं प्रत्येक से यही सिद्ध होता था कि उनका निर्धारण करने वाला केवल अपने ही प्रयोजन का ध्यान रखता है। किसी का यह अभिप्राय होता था कि किसी प्रकार ऋणसे मुक्त हों ता उत्तम है, कोई अपनी कामना के सामने अपर सम्पूर्ण बातों को व्यर्थ समझता था, किसी के हृदय में नराधिप और उनके अन्तरङ्गों के धन का लोभ समाया हुआ था और कोई किसी के कल्पित अपराध पर उसका जीवन समाप्त करने की चिन्ता रखता था। अभिप्राय यह कि इन दुष्टात्माओं को, जो वेनिस का सत्यानाश अथवा और नहीं तो उसके प्रबन्ध की बुराई चाहते थे, अब पूरा भरोसा हो गया कि वह अपनी कामना के सिद्ध होने में सफल मनोरथ होंगे, क्योंकि उन दिनों एक नवीन कर (टैक्स) के प्रचलित होने से वेनिस के लोग वहाँ के शाशकों से कुछ अप्रसन्न हो रहे थे। परन्तु यद्यपि कि इन लोगों के पास सम्पत्ति और सहाय दोनों वस्तुयें इतनी थीं कि वे अपनी कामनाओं को भली भाँति पूर्ण कर सकते थे और इस कारण अंड्रियास को जिसे अद्यपर्यन्त उनके नैश अधिवे- शनों का तनिक भी भेद न ज्ञात हुआ था तुच्छ समझते थे तथापि उनका यह साहस नहीं होता था कि उस कार्य को विना कतिपय लोगों को ठिकाने लगाये हुये कर डालें क्योंकि उन को सदा आशङ्का बनी रहती थी कि ऐसा न हो कहीं ठीक