शोक!! इस समय व्यर्य मैंने ऐसी दृढ़ता प्रगट की, अभी से मेरा धैर्य्य और हृदय बल विनष्ट हुआ जाता है। हाय! फ्लोडोआर्डो जो कुछ मैंने इस निश्शीला जिह्वा से कहा वह मेरे हृदय में कदापि न था। अब मैं तुम से स्नेह करती हूँ और सर्वदैव करूँगी चाहे कामिला असंतुष्ट अथवा अप्रसन्न हो और चाहे मेरे पूज्य पितृव्य मुझसे घृणा अथवा द्वेष करें"।
इस घटना के अल्प ही दिवसोपरांत उसको ज्ञात हुआ कि फ्लोडोआर्डो ने निज प्रकृति और प्रणाली बदल दी है और समग्र सहवासों और संगतों से पृथक रहता है। यदि कभी किसी मित्र के अनुरोध उपरोध से किसी उत्सव में संयुक्त भी होता है तो उसका मुख मलीन और चित्त उदासीन रहता है और उसके ढंग से ज्ञात होता है कि वह किसी ऐसे ही सन्ताप से संतप्त हुआ है जिसका प्रभाव उसके हृदय पर अब तक शेष है। यह वृत्तान्त श्रवण कर रोजाबिला के हृदय को अत्यन्त उद्विग्नता हुई और वह निज आयतन में जाकर रुदन करने लगी। उस दिन से सदा उसको इसी बात का संताप रहता था और वह प्रातदिन क्षीण होती जाती थी, यहाँ तक कि कुछ दिनों में उसकी दशा पूर्णतया असन्तोषजनक और हीन हो गई और भूमिनाथ को उसके स्वास्थ्य में अंतर पड़ने को आशङ्का हुई। फ्लोडोआर्डो के उदासीन होने और एकान्त वास खीकार करने का भी यही कारण था कि वह रोजाविला को जिसके कारण से वह समारोहों में संयुक्त हुआ करता था अब कहीं न पाता था।
अब यहाँ इस आख्यान को छोड़कर फिर उन विप्लव कोरियों और विद्रोहियों की चर्चा प्रारंभ होती है जो अहर्निशि अंड्रियास और उसके शाशनाधिकार के नाश करने की चिन्ता में रहते थे और जिनकी संख्या प्रतिदिन बढ़ती जाती थी-यहाँ