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त्रयोदश परिच्छेद
 

पूर्व कि वह कोई विचार निश्चित करे फ्लोडोआर्डो ने जिसकी आकुलता प्रगट में उससे, न्यून न थी, अपने स्थान से उठ कर उसका करपल्लव अत्यन्त सम्मान से स्व कर कमलों में लिया और उसे सरोवर के कूलपर अपने स्थान पर लाकर बैठाया। अब रोजाविला तत्काल वहाँ से प्रस्थान नहीं कर सकती थी क्योंकि ऐसी दशा में उठजाना असभ्यता में परिणत होता। फ्लोडोआर्डो उसका कोमल कर अपने हाथों में लिये रहा, परन्तु फ्लोडोआर्डो के लिये यह एक ऐसी साधारण बात थी कि उस समय वह इसके लिये उसको कुछ कह भी नहीं सकती थी। इसके अतिरिक्त उससे यह भी नहीं हो सकता था कि वह अपने किशलय सदृश करको खींचले, क्योंकि वह यह बिचारती थी कि फ्लोडोआर्डो के हाथ में मेरा हाथ होने से मेरी कुछ क्षति नहीं, बरन उसको एक प्रकार का आनन्द है अतएव मैं क्यों ऐसा काम करूँ कि किसीके ऐसे आनन्द को हरण करलूं जिसमें मेरी किसी प्रकार की हानि नहीं।

इधर तो रोजाबिला यह सोच रही थी और उधर न जानें फ्लोडोआर्डो के हृदय में कैसै कैसे अनुमान समूह अंकुरित हो रहे थे। निदान उससे देर तक मौन न बैठा गया इसलिये उसने बार्तालाप आरंभ करने के लिये कहा "राजकन्यके! आपने अच्छा किया कि इस समय वायु सेवनके लिये निकलीं देखिये कैसा सुहावना समय है"।

रोजाबिला―"परन्तु महाशय मैं अनुमान करती हूँ कि मेरे आनेसे आपके पठन में बिघ्न पड़ा।"

फ्लोडोआर्डो―"कदापि नहीं"। इतनी बातें करके फिर वे लोग अल्पकाल के लिये चिन्तित हो गये परन्तु इस अवसर पर कभी आकाश कभी बसुमती कभी वृक्षों और कुसुमकलि का ओंकी ओर दृष्टिपात करते जाते थे जिसमें समालाप करने