कामिला---'सच कहो ! तब तो तुम अवश्य प्रसन्न होगी यदि बेनिसकी कोई धनवती युवती फ्लोडोआर्डो से ब्याह कर ले' ।
रोजाविला--(शीघ्रता से ) "नहीं कामिला, फ्लोडोआर्ड? इसको कभी न स्वीकार करेगा, इसका मुझे पूर्ण विश्वास है" ।
कामिला-"पुत्री! पुत्री !! तुम जान बूझकर अपने को भ्रान्त बनाती हो, परन्तु तुम पर क्या प्रत्येक स्त्री, जो किसी के स्नेहपाशबद्ध होती है,सदाके संयोग की चाहका सम्बन्ध मित्रता के विचार के साथ २ लगा लेती है, पर इस प्रकार की चाह तुम फ्लोडोआडों के विषय में पूरी नहीं कर सकती हो क्योंकि इससे तुम्हारे पितृव्य असंतुष्ट होंगे, कल्पना किया कि वे सत्पुरुष और दयालु व्यक्ति हैं परन्तु वे राजकीय प्रबन्ध,प्रणाली, रीति और नियम के सर्वथा वशवर्ती हैं।
रोजाविला--" मैं कामिला इन सब बातों को भली भांति जानती हूं परन्तु तुम मेरा अभिप्रायही नहीं समझती हो,मैं तुमसे कहती हूं। फ्लोडोआडो पर मैं मोहित नहीं हूं और न उसका मोहन स्वरूप मेरे हृदय में प्रविष्ट हो कर मुझे मोह सकता है । मैं द्वितीय वार तुमसे कहती हूं कि मुझे फ्लोडोआर्डो के विषय में केवल सच्ची और पुनीत मित्रता का ध्यान है और इसमें सन्देह नहीं कि फ्लोडोआडो इस योग्य है कि मुझे उसका इतना ध्यान हो। मैंने कहा “ इस योग्य है, हाय ! फ्लोडोआडो किस योग्य नहीं है"।
कामिला-" हां ! हां !! निस्सन्देह मित्रता के योग्य है बरन
आसक्त होजाने के । खेद है कि रोजाविला तुम अभी नहीं जानती हो कि छल करनेवाले कुटने और कुटनियां परस्पर एक दुसरे का वेश परिवर्तन कर सीधी युवतियों के हृदय