[ वेद और उनका साहित्य गर्भाधान -पुत्रकामा स्त्री ने जिस पति को धारण किया है उससे ईश्वर की कृपा से पुत्र प्राप्त होगा। य०६।१।३ पुरुष जननेन्द्रिय गर्भ मे चीर्य का धारण कराने वाली है। यह इन्द्रिय मेरुदण्ड, मस्तिष्क और अंगसे इकट्ठे किये वीर्य को वाण में पंख की तरह योनि में पकता है। कन्यादान हे वर! यह बध तेरे कुल की रक्षा करने वाली है, इसे तेरे लिये दान करता हूँ 1 यह सदा माता पितादिकों में रहे और अपनी बुद्धि से उत्तम विचारों को उत्पन्न करे । ध०१ । १४ । ३ एनीकर्म-ये सब सौभाग्यमान स्त्रियां भागई है । स्त्री तू उठ, वल प्राप्तकर, पति के साथ उत्तम पनी बन कर और पुत्रवती हो कर रह । यज्ञकर और घहा लेकर जल भर । थ० १२।१।१४ यहाँ ही तुम दोनों रहो । अलग मत हो। पुत्र और नातियों के साथ खेलते हुए अपने उत्तम घर में दीर्घ काल तक यानन्द प्राप्त करो य० १४।१।२२ जिस प्रकार बलवान समुद्र ने नदियों का साम्राज्य उत्पन्न किया है इसी प्रकार तु पति के घर जाकर सम्राट् की पजी वम । अपने श्वसुर देवर, ननद और सासू के साथ महारानी हो कर रहे । ५०१४।१।४।
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