पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/९६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चौथा अध्याय ] उपनयन-जिस थाचार्य ने हमारे यह मेखला बांधी है उसके उत्तम शासन में हम विचरते हैं। वही हमें पार लगावे और वन्धन से मुक्त करे। ०६१ १३३।१ - इस मेखला को धारण करके हम श्रद्धा, तप, तथा श्राप्त बचन पर मति, मेघा धारण करेंगे। हमें दम और तप प्राप्त होगा श्र०६। १३३।४ बस्त्र बुनना-भिन्न-भिन्न रङ्ग रूपवाली दो स्त्रियाँ क्रम से छः खुटियोंवाले ताने के पास आती हैं और उनमें से एक सूत को खींचती है। दूसरी रखती है। उनमें से कोई भी खराब काम नहीं करती। श्र० १०।१।४३ यह जो कपड़े के छोर पर किनारियाँ हैं। और ये जो ताने-बाने हैं सो सब पलियों द्वारा चुने हुए हैं। यह सब हमारे लिये सुख कारक है। प्र० १४ । २३ ५१ । मनस्वी लोग सीसे के यन्त्र से ताना फैला कर मन से वस्त्र बुनते हैं। य० १९।८ राज्य व्यवस्था सृष्टि के प्रारम्भ में केवल एक राजा से रहित प्रजाशक्ति ही थी। इस राजविहीन अवस्था को देखकर सब भय-भीत हो गये और सोचने लगे कि क्या यही दशा सदैव रहेगी। यह प्रजाशक्ति उत्क्रान्त होगयी और गृहपति में परिणत हो गयी, अर्थात जो अलग-अलग मनुष्य थे उनके व्यवस्थित कुटुम्ब बन गये। यह भी पना शक्ति उत्क्रान्त होगई और सभा के रूप में परिणित्त धर्ट : को प्रविष्ट होता वह सभ्य कहलाता था।