पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/८९

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55 [वेद और उनसाहित्य न मृत्यु थी, न अमरत्व था न रात दिन थे। तव वही एक अपनी शक्ति से प्राग रूप था। उसके भिन्न कोई न था । ऋ० १०।१८६ । ३ तब अन्धकार युक्त मूल प्रकृति थी और यह सब जगत् थज्ञय थवस्था में गतिमय प्रवाह स्वरूप था। तत्र शून्यता से व्यापक प्रकृति ढकी हुई थी। तब उष्णता से एक पदार्थ बना । तब मन की एक शक्ति थी-उस पर संकल्प हुया उससे जगन बना, सत् असत चेतन और जड धात्मा और अनामा इन में परस्पर सम्बन्ध है। यह ज्ञानियों ने जाना । १०।१२६ । ४ सीनों (जीव, ब्रह्म, धीर प्रकृति) के मिलन से एक प्रकाश बना। यह श्वर इज्जत बढ़ाने वाला, पत्री के रहने योग्य, सुखदायक, और प्रकाश से युक्त होगा। ०३।१२। मातृ भूमि-सत्य, वृष्टि, न्याय, शक्ति, दक्षता, aप ज्ञान, और यज्ञ ये थाठ गुण हमारी उस मातृ भूमि की धारण की रक्षा करें जो हमें त्रिकाल में पालन करने वाली हैं। था १२ । १ जिल में नदी, जलाशय प्रादि बहुत हैं, खूब खेती होती है जो जीवित मनुष्यों को चहल पहल से भरी हुई है यह मात्र भूमि हमारी च० १२.. 1