चौथा अध्याय] ८५ शक्तिवान् , स्वदेशीवस्त्र पहिने मरने के लिए तैयार वीर हैं, इस लिए वे श्राकाश के समान विशाल हैं। ऋ० ५।५११४ धनुयुद्ध-गोह के चमड़े का दस्ताना सर्प की तरह मेरे हाथ से लिपट कर धनुष की डोरो की चोट से मेरे हाथ की रक्षा करता मा०६।७५।१४ हमारे रथ के पहिये, धुर', घोड़े और लगाम सव मजबूत हैं ऋ० १।३८ । १२ बैद्य.-जो सब औषध को सभा में एकत्रित राजाओं की तरह सजा कर रवखे-वही वैद्य है। ऋ० १० रक्षा के उपाय हे ज्ञानियों ! उत्तम भाषण कीजिये ज्ञान और पुरुपार्थ फैलाइये। शत्रु से बचा कर पार लेजाने वाली नावें बनाइये अन्न तैयार कीजिये । सब शस्त्रास्त्र तैयार रखिये । अग्र भाग में बढ़ाने का सत्कार, संगति-दान रूप सत्कर्म बदाइये । ऋ० १०।१०१ । २ खेती-हल चलाइये ! जोडियों को जोतिये । जमीन तैयार करने पर उसमें बीज बोइये । और धान्य काटने के हंसिये निश्चय पके हुये धान्यों में व्यवहार कीजिये, इससे भरण पोषण होगा। ऋ० १० । १०१।३ कुआ- -सब डोल, बालटियों को ठीक रक्खो, रस्सी को मजबूत वनाओ। फिर अटूट और मीठे जल के कुए से पानी सींचो । ऋ-१० । १०१ । ५ गोशाला--गायें स्वच्छ वायु में घूमे और स्वच्छ जल पीवें तथा पुष्टि कर अपौधियाँ खाकर पुष्ट होवें और हमें अमृत समान ० १०1१६६।१ दृघ दें।
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