पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/८४

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चौथा अध्याय] ८३ संयम-याचार्य और राष्ट्रपति को संयम और ब्रह्मचर्य से रहना शोभा देता है। जो संयमी राजा होता है, वही इन्द्र कहाता है। लीया। राजा ब्रह्मचर्य के ही तेज से राष्ट्र की रक्षा करता है और प्राचार्य ब्रह्मचर्य ही के बल पर विद्यार्थियों को ब्रह्मचारी बना सकता है । अ० ११ । (७) ब्रह्म चर्य से और तप से देवताओं ने मृयु को जीता। अ० ११११। (७) विधाह-हे तपोनिष्ट ब्रह्मचारी ! तुझ सुन्दर को मैंने मन से बर ऋ० १० । १८३ । १ हे बधू ! तू अपने सुन्दर शरीर का ऋतुकालीन संयोग चाह ! मैं तुझे मन से चाहता हूँ, मुझ से विवाह करके सन्तान उत्पन्न कर । ऋ. १०।१८३ । २० विवाह को कामनावाली कितनी हो त्रियाँ पुरुष की मीठी-मीठी बातों में बहक कर उनके अधीन हो जाती हैं परन्तु कुलवती (भद्रा) म्री सभा के बीच में ही पति को चुनती हैं। ऋ० १० । २१ । १२ दिन दुही गाय की तरह अविवाहिता युवतियाँ जो कुमारावस्था त्याग चुकी है या नवीन ज्ञान से पूर्ण होकर गर्भ धारण करती है। ऋ०३ । ५५ । १६ औषधि जो औपधियाँ देवों से तीन युग प्रथम उत्पन्न होगई थी उनकी एक सौ सात जातियाँ हैं। ऋ० १०॥९७२ यौपधियाँ सोमराज से कहती हैं कि सच्चा वैद्य जिस रोगी के लिये हमारी योजना करता है उस रोगी को रोग से हम मुक्त कर देती हैं। 1