ऋ० १०। १८ । १ चौथा-अध्याय वेदों के महत्वपूर्ण वर्णन श्वालो छ वास-विज्ञान-श्वास और उच्छ्वास ये दो वायु हैं। भीतर जानेवाला श्वास है वह बल देता है और जो वाहर आनेवाला उच्छ वास है वह दोपों को दूर करता है । इस प्रकार दोष दूर करने और वल बढ़ाने के कारण प्राणी जीवित रहते हैं। ऋ० १० । १३७ । २ शुद्ध वायु-शुद्ध वायु रोग दूर करने वाला श्रौषध है। वही हृदय और मन को शान्ति देनेवाला है। यानन्द प्रसन्नता उसी से प्राप्त होती है । दीर्घायु भी उसी से प्राप्त होती है। दीर्घायु रहस्य-हे प्राण नीति ! घी पीकर, प्रकाश में रह कर और सूर्य के दर्शन कर के हम तेरी रक्षा करें। हमारे मन दीर्घ जीवन के लिये दृढ़ हों ऋ० १०।२९ । ५ दूध पीना-गाय का ताजा दूध उत्तम है। जो पकाने पर पक्व होता है। जो नवीन होता है वही पदार्थ अच्छा होता है । दोपहर के भोजन के साथ दही खाना और उत्तम पुरुषार्थ करना चाहिए । ऋ० १०।१७८ । २ दान-जो दुर्बल, रोगी भिखारी को अन्न देता है वही सच्चा भोजन करता है। उसके पास योग्य समय पर दान के लिए अन्न की कमी नहीं रहती और विपत्ति से उसकी रक्षा होती है। ऋ० १०।११७ । ३ तीन गुण-मित्रता, न्याय और वीरता ये तीन गुण मनुष्य में होने चाहिए। ऋ० १० । १८५। १
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