दुसरा अध्याय } , ३- ४ पशु-सिंह, गज, वृक (भेडिया), वराह, महिप, ऋक्ष, वानर, मेष ( मेढा ), अजा (बकरा ), गर्दभः, श्वा (कुत्ता), गौः, ऊष्ट्र, । १ पक्षी-हंस, क्रौञ्च, चक्रवाक, मयूरी, प्रतुद् , ६ खनिज-स्वर्ण, अयः (लोहा), रजत (चाँदी), ७ मनु जाति वर्ग-गान्धार, मूनवत, पञ्चवर्ग, पञ्चजन, पूरकः, तुर्वशाः, यदवः, अनवः, दुह्यवः, मत्स्याः, सृज्जय, उशीनराः, चेदयः किवयः, भरता, क्रीवयः ८ गहने-कटक, कुण्डल, ग्नैवेय, नूपुर, आदि । अब केवल एक बात और कहकर हम इस पूज्य ग्रन्थ की चच समाप्त करते हैं-वह बात है ऋषि दयानन्द और वेद के - सम्बन्ध में । सायण के बाद ऋग्वेद पर ऋषि दयानन्द ही का आर्यभाष्य महत्व पूर्ण है । इस प्रबल महापुरुष में विशेषता यह है कि विशुद्ध संस्कृत का विद्वान होते हुर भी अत्यन्त स्वच्छन्द बुद्धि और नवीन विवेक से इसने वेदों को देखा, समझा और समझाया है । ऋषि दयानन्द ब्रह्मवादी मत के हैं और उन्होंने वेदों के वैज्ञानिक अर्थ किये हैं। स्वामी दयानन्द वेदों का काल १ अरव १६ करोड लाख ५२ हजार ६ सौ ८४ मानते हैं। जो कि वास्तव में उनके मत से सृष्टयुत्पत्ति का काल है । अब उनके मतानुसार ऋग्वेद के विषय-स्थलों का हम संकेत यहाँ देना उचित समझते हैं- ब्रह्म विद्या और धर्म श्रादि-१ । ६ । १५ । ५, १ । २ । ७ । ५, ८।८।४६ । २-३-४,। सृष्टि विद्या - । ७ । १७, ८ । ७ । ३, पृथ्वी धादि का भ्रमण--८।२ । १० । १,६। ४ । १३ । ३, मात्र
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