[बेद और उनका साहित्य के थे, पीछे भृगुवंश के हो गये, परन्तु विष्णु पुराण और वायु- पुराण ने गृत्समिद को सैनिक का पिता बताया है, जिसने वर्णों का निर्माण किया । (दि० ४-1) कराव को विष्णुपुराण (५-१६) मे और भागवत (४-२०) में रु की सन्तान लिखा है; जो क्षत्रिय थे, पर वे ब्राम्हण माने जाते थे। अजमीध से कराव और उससे मेधातिथि उत्पन्न हुए जिनसे कशवनय (कान्यकुब्ज ?) ब्राम्हण उत्पन्न हुए । (वि. पु. ४-११) अत्रि को विष्णुपुराण मे पुररवा का दादा कहा गया है (वि० ४-६) मत्स्यपुराण (२० १३२) मे ३१ वैदिक सूक्तकारों का वर्णन दिया गया है। परन्तु वास्तव में श्राधुनिक पुराणों का वर्णन इन अति प्राचीन ऋपियों के सम्बन्ध में उतना प्रामाणिक नहीं हो सकता कि जिस पर बिल्कुल निर्भर रहा जाय । पुराणो ने ऋपियों के तीन भेद किये है- देवर्षि-जैसे नारद, ब्रम्हर्षि-जैसे वशिष्ठ, राजर्षि-जैसे जनक। परन्तु निश्चय ही चैदिक ऋषि इन विभागों से पृथक थे। तब ये श्रेणियाँ बनी ही न थी। इन तमाम वर्णनों से हम ऋग्वेद में इन वस्तुओं को प्राप्त करते हैं- १ नदियाँ-जो लगभग २५ है । जिनमें नीन को छोड शेष सब सिन्धु नद की शाग्वाएँ है। १ वितस्ता, २थसिनि (चन्द्रभागा) उपररणी (रावी), ५ विघाट, ५ शुतद्री (सतलज), ६ कुमा, ७ सुवास्तु म मु, ६ गोमती, १० गंगा, ११ जमुना, १२ सरस्वती, १३ सिन्धु, १३ पद्धती, १४ रसा, ११ सरयू, १६ अञ्जली, १७ 'कुलिशी, १० वीर पत्नी, १६ मुशोमा, २० भरुद् घृधा, २१ श्रा कीया ( विपाशा ), २२ तृष्टामा, २३ सुसतुं, २४ श्वेती, २५ मेहन्नु । २-पर्वत १-हिमवन्त ( हिमालय) २- मूजवत् (जहां सोम रसन्न होता है, और जो काबुल के पास कारमीर से दक्षिण पश्चिम में है)३–त्रिक कुत ५--- -नावापनंशन
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