पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/६९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

5 [ वेद और उनका साहित्य २१-हे नानारंगों की चमकीली उपा ! दूर तक तेरा विस्तार है । तेरा निवास कहाँ है ? २२-हे प्रकाश की पुत्री! इन भेटों को स्वीकार कर और हमारे सुखों को चिरस्थायी कर । (१--३०) -याकाश की यह पुत्री जो युवनी है, श्वेत वस्त्र धारण किये है और सारे संसार के धन की स्वामिनी है, वह हमें प्रकाश देती है, हे शुभ्र उपा ! हमें यहाँ प्रकाश दे। 4-जिस मार्ग से बहुत प्रभात बीत गये हैं और अनन्त प्रभात श्राने वाले हैं उसी मार्ग से चलती हुई तेजस्विनी उपा अन्धकार को दूर करती है और जो लोग मृतकों की नाई नींद में देखबर पड़े हैं उन सब को जीवित करके जगाती है। १...-कब से उपा का उदय होता है और कब तक होता रहेगा। शाज का प्रभात उन सबके पीछे है जो बीत गये है और आगामी प्रभात प्राज के चमकीले उपा का पीछा करेगा। (३।११३) ११- अपनी माता के द्वारा सिंगारी हुई दुलहिन की नाई शोभा- यमान होकर तू प्रकट हुई। हे शुभ उपे! इस प्राधादित अन्धकार को दूर कर । नेरे सिवा और कोई इसे दूर नहीं कर सकता। (१ । १२३) यह उपा, प्राचीन-जानियों में भी बहुत प्रसिद्ध है। यूनानी भाषा में 'उपस' को ' इयोस ( Eos) और लैटिन में अरोरा (Aurora) के नाम से पुकारा गया है । 'अर्जुनी' वही है जो यूनानियों के यहाँ अर्जिनोरिस (Argy noris) है। वृमया' यूनानी बिसेइम (Briseis) घऔर 'दहना' चूनानी दफने (Dophney है। 'सरमा' यूनानी हेलेना (Heloda) -