दूसरा अध्याय] कई सूक्तों में वर्णन है । ये दोनों 'अश्विन' अपने तीन पहिये के रथ पर प्रतिदिन पृथ्वी-परिक्रमा करते हैं और दुखियों की चिकित्सा करते हैं । अब एक सुन्दर अलंकार को देखिए जो ऋग्वेद के सूक्त में है- १-पनिस कहता है-हे सरमा ! तू यहाँ क्यों प्रायो है ? यह स्थान बहुत दूर है । पीछे को देखने वाला इस मार्ग से नहीं जा सकता। हमारे पास क्या है ? जिसके लिये तू यायी है। तू ने कितनी यात्रा की है। तू ने रसा नदी कैसे पार की ? -सरमा कहती है मैं इन्द्र की भेजी पायी हूँ। हे पनिस ! तुमने बहुत से पशु छिपा रखे हैं, मैं उन्हें लंगी । जल मेरा सहायक है। मैं रसा पार कर पायी हूँ। ३--पनिस-बह इन्द्र कैसा है जिसकी भेजी तू दूर से पाती है। वह किसके समान दोख पड़ता है । ( परस्पर) इसे पाने दो हम इसे प्रेम से ग्रहण करेंगे। इसे पशु दे देंगे। ४- मैं किसी को ऐसा नहीं देखती जो इन्द्र को जीत सके; वह सब को जीतने वाला है। बड़ी-बड़ी नदियाँ उसके मार्ग को नहीं रोक सकती । हे पनिस ! तुम निस्सन्देह इन्द्र से बध किये जानोगे । ५–पनिस-हे सुन्दरी! तुम बड़ी दूर से-याकाश से-शायी हो, हम बिना झगड़ा किये तुम्हें पशु दिये देते हैं । दूसरा कौन इस तरह दे देता? हमारे पास बड़े तीन हथियार है। ६--पनिस-हे सरमा! तुम्हें इन्द्र ने धमकाने को भेजा है। हम तुम्हें अपनी बहिन की तरह स्वीकार करते हैं। तुम लौटो मत, हम तुम्हें पशुओं में से एक भाग देंगे। कैसे भाई वन्धु का सम्बन्ध निकालते हो? इन्द्र और माडिरस यह सब बात जानते हैं। जब तक सब पशु न प्राप्त हों मैं उन पर दृष्टि रखती हूँ, तुम दूर भाग जानो। (० १०, १०८) -सरमा-तुम
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