[ वेद और उनका साहित्य होकर लीन हो जाता है जैसे मनुष्य का जीन समास हो जाना है। ऋग्वेद के अनुसार विवस्वत अर्थात् श्रीकाश यम का पिता है। मरन्यु थर्थात् प्रभान उसकी माता है और यमी उसको बहिन है। इस घटना पर ऋग्वेद में एक अद्भुत वणन है । यम की बहिन यमी, यम से पति की तरह थालिंगन किया चाहती है। परन्तु यम इसे स्वीकार नहीं करता । यम यमी वास्तव में दिन रात हैं। यद्यपि दिन रात सदा एक दूसरे का पीछा किये रहते है परन्तु उनका समागम तो कभी हो ही नहीं सकता। ऋग्वेद में यह देवता मृतको का राजा है। यहाँ तक तो उसका पौराणिक चरित्र मिलता है, परन्तु इसके भागे समानता का लोप हो जाता है। वैदिक यम उस मुखी लोक का परोपकारी देवना जहाँ पुण्यात्मा मृयु के बाद रहकर मुम्ब भोगते हैं और जिनको पितरों के नाम से सम्मानित किया जाता है, किन्तु पौराणिको का यम भयानक दण्ड देने वाला, बड़ा निष्ठुर, पापियों का कोतवाल है। चेद के मुक्त सुनिए- १--विवस्वत के पुत्र यम का सम्मान करो, सब लोग उपीके पास जाते हैं। पुण्यवानों को वह सुख के देश में ले जाता है । २-यम ने हमें प्रथम मार्ग दिखाया, वह कभी नष्ट न होगा, प्राणी उसी मार्ग से जावेंगे, जिन से हमारे पितर गये हैं। (१०१४) 'सोम' एक नशीली वनस्पति है। किन्तु देखते है कि उसकी भी देवता की तरह स्तुति की गयी है। जिन विवस्वत अर्थात् प्राकाश और सरण्यु थर्थात् प्रभात से यम-यमी दो सन्तान हुए उन्ही से 'अश्विन' यमज भी हुए । ये अश्विन भी यम- यमी की तरह प्रभात और संध्या से उत्पन्न हुए हैं। ये थश्विन ऋग्वेद में बड़े भारी चिकित्सक माने गये हैं। उन की दयापूर्ण चिकि सायों का
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