दूसरा अध्याय । वायु और सालवोनियन लोगों में प्रोग्नि (Ogni ) कहते थे। इसी प्रकार 'प्रमन्थ' का नाम 'प्रोमेधिनस' 'भरण्यु' का 'फोरोनस' और 'उल्का' का 'वल के नस' के रूप में पाते हैं। परन्तु ऋग्वेद की 'अग्नि' पृथ्वी की साधारण अन्नि नहीं, यह वह अग्नि है जो बिनली और सूर्य में थी, और उसका निवास अरष्ट में था। भृगु ने उसे जाना, मातरिश्चन उसे नीचे लाये और अथर्वन तथा अंगिरा ने उसे पृथ्वी पर मनुष्यों के लिए स्थापित किया। इन प्रवचनों में अग्नि की प्रारम्भिक खोज का महत्व मिलता है। वेद में वायु ने कम महत्व प्राप्त किया है के सुक्त बहुत थोड़े हैं। सिर्फ नाँधी के देवता 'महस' को बहुधा स्मरण किया गया है। वे भयानक थे; परन्तु उपकारी थे, क्योंकि अपनी माता पृयिन (बादलों) से वहुत सी दृष्टि दुह लेते थे। रुद्र भयानक देवता है और वह मल्स का पिता है। यारक और सायन उसे 'धम्नि' का रूप बताते हैं। डा० राय का अभिप्राय इससे भयानक गर्नने वाले आँधी और तूफान से है। यह भी देवता विष्णु की तरह वेद में छोटासा ही देवता है। उसके सम्बन्ध में बहुत कम स्क्त हैं । पौराणिक काल में वइ बड़ा महान देवत्ता हो गया है। उप- निपदों में काली, कराली आदि नाम उन भयानक विजलिमों के हैं जो रुद्र (तूफान ) के साथ गर्जन तर्नन से आती हैं। रचेत यजुर्वेद में 'अम्बिका' भी उसमें गिनी गयी है; परन्तु पुराणों में ये सब रुद्र की स्त्रियाँ बन गयी है। परन्तु वेद में एक भी किसी देवी का कहीं नाम नहीं पाया है। स्तन अव 'यम' की बात लीजिए । यह भी पुराणों का प्रवल देवता हो गया है। प्रयोग में वह सूर्य का पुत्र कहा गया है-परन्तु ऋग्वेद में यम की कल्पना अस्त होते हुए सूर्य से की गयी है। सूर्य उसी तरह अस्त
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