१२ [ वेद और उनका साहित्य करता है ( टकरा कर बिजली चमकाता है) तब जल से नद नदी परिपूर्ण हो जानी है । इस युद्ध में महत् देव (आँधी) इन्द्र की दडी सहायता करते है और खून गरजते है । ईरानो पुस्तकों में यद्यपि 'इन्द्र' नाम नहीं है, किन्तु 'वेरे थन' नाम है जो वास्तव में 'वृवघ्न' का अपनश है। जन्दावना पुस्तक में 'यह' के 'थूथतन' द्वारा मारे जाने का उल्लेख है । 'अहि' तो उपर्युक्त 'वृत्र' का ही नाम है थोर थू येतन, इन्द्र का। ऋग्वंद के सूतों में वरुण' और 'इन्द्र' इन दो महान देवताओं का वर्णन एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न है । इन्द्र के मूतो में दल और शक्ति की विशेषता पायी जाती है थोर वरुण के सूक्तो मे सदाचार के भावो की विशेषता है । इन्द्र एक प्रबल देव है जो सोम पान करता है, योद्धा है, मम्तो की सहायता से अनावृष्टि से युद्ध करता है, असुरों के युद्ध में भार्यों के दल का नेता है और नदियों के तट की भूमि को खोदने में महायक है। पूपण गोपा का सूर्य है । विष्णु ने थाज कल के हिन्दुओं में बड़ा उच्च स्थान प्राप्त किया है। परन्तु वैदिक देवतायों में वह एक साधारण देवता है और उसका यह इन्द्र, वरुए, सवितृ तथा अग्नि से कहीं नोचा है । इस विष्णु रूप सूर्य के लिए वेद कहता है कि यह तीन पद मे-अर्थात् उगते हुये शिरो बिन्दु पर तथा श्रस्त होते हुए 'थाकाश को पार करता है। इसी को पुराणो ने प्रख्यात बालि छल का रूप दिया है। 'अग्नि सभी प्राचीन जातियों में श्रादरणीय वस्तु धी। थग्नि को 'यविष्ट' अर्थात् छोटा देवना कहा गया है। क्योंकि, वह बारम्बार रगड़ कर निकाली जाती थी। इसी लिए उसे 'प्रमन्थ' भी कहा गया है। यह बात श्राश्चर्य की नहीं है कि अन्य प्राचीन जातियाँ भी थग्नि को प्रतिष्टा करती थीं। लैटिन में अग्नि के देवता को 'इग्निस' (Ignis)
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