[ वेद और उनका साहित्य मिलता है। पनाय का प्राचीन नाम सारस्वत प्रसिद्ध भी है। ऋग्वेद में जाति और वर्ण के विषय में जो कुछ है, उसे हम विस्तार से फिर लिखेंगे । इतना अवश्य कह सकते है कि वर्तमान जाति या वर्ण व्यवस्था ऋग्वेद काल में न थी । प्रत्येक घर का स्वामी स्वयं अपना पुरोहित होता था और वह अपने परिजनों के साथ वेद मन्त्रों द्वारा अग्नि स्थापन और हवन करता था। अग्नि सुलगाना उन दिनों में वास्तव में एक बड़ी भारी प्रसन्नता की एवं महत्व पूर्ण और असाधारण बात रही होगी। वस्त्री की कमी, नंगल का वास, आग्नेय वस्तुओं का अभाव इन सब कारणों से यह बान समझी जा सकती है। स्त्रियाँ सब कामों में भाग लेती थी। वे स्त्रिों जो स्वयं ऋषि या मन्त्र दृष्टा थी सूक्तों की व्याख्या करती और होम कहती थी। स्त्रियों के लिए कोई बुरे बन्धन न थे । न पर्दा ही था । विदुषी स्त्री विश्ववारा जो कई सूक्तों की ऋपि श्री का परिचय म. ५ मू० २८ १०३ से मिलता है। आज कल के पत्र के समान नियमों से यदि उन सरल और उदार नियमों का मिलान किया जाय तो इस सभ्यता के विकास पर धिक्कार देने की ही इच्छा होती है। कुछ कुमारियों का भी जिक्र हम पाते हैं जिन्हें पिता की सम्पत्ति में भाग मिला था (मं• २ सू० १७ सू०७) कुछ प्रातःकाल पाकर गृह कर्म में लगने वाली प्रात काल के समान पवित्र स्त्रियों का भी जिक्र म० मू० १२४ ऋ० ५ में मिलता है । कन्या पति को चुनती थी, इसके प्रबल प्रमाण जहाँ तहाँ मिलते है । विवाह की रीतियाँ बहुत उत्कृष्ट थी । 'कन्यादान' का अधिकार पिता को न था 1 भागे हम भिन्न-भिन्न विषयों पर ऋग्वेद की सम्मतियों का उल्लेस करेंगे। ऋग्वेद के देवतामों में सर्वशक्तिमान-व्यापक परमेश्वर कोई सर्वोपरि
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