वेद और उनका साहित्य प्रथम अध्याय वेद वेद पृथ्वी भर के अत्यन्त प्राचीन और सम्माननीय पवित्र ग्रन्थ हैं । श्राज भी ये आर्य सभ्यता के द्योतक और हिन्दू धर्म के प्रामाणिक पथ दर्शक हैं । असंख्य सम्प्रदायों में छिन्न-भिन्न, और अनेक कुसंस्कारों से व्यस्त हिन्दू जाति अाज भी वेदों के सामने एक मत से सिर झुकाती है । इनका इतना महत्वपूर्ण स्थान होने पर भी ये अब तक परमगोपनीय, गहन और अजेय बने रहे हैं। इसलिए हम वेदों का साधारण सा परिचय इन अध्यायों में पाठकों को कराना चाहते हैं। वेद पार्यों का सब से प्राचीन साहित्य है। पाश्चात्य जगन्मान्य विद्वानों ने भी ऋग्वेद को मानवीय सभ्यता का अादि ग्रन्थ स्वीकार किया है। महर्षि दयानन्द वेदों का काल १ अरव ६६ करोड़, ८ लाख १२ हजार ६ सौ ८४ वर्ष मानते हैं-सायन भाप्यकार का भी यही मत है। इन विद्वानों के मत से वेद ईश्वर कृत साहित्य है और सृष्टि के श्रादि काल में उसका उदय हुआ है । दिव्यात्मा तिलक ने गणित और ज्योतिप के आधार पर वेदों को मसीह से ६००० वर्ष पूर्व का सिद्ध किया है । इसी मत पर प्रायः योरुप के विद्वान स्थिर हैं। बीच के समय में भारतवर्ष वेदों के असली वैज्ञानिक रूप को भूल गया था। वेद पाठी-कर्मकाण्डी-लोग जहाँ तहाँ, विशेप कर दक्षिण में वेद मन्त्र पड़ा करते थे; परन्तु उनके अर्थ आदि का ज्ञान उनमें से बहुत कम लोगों को होता था। उन दिनों योरुप तो संस्कृत साहित्य
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