दूसरा अध्याय] जिसके उत्तर में हिमालय, पश्चिम में सिन्धु नदी, और सुलेमान पहाड़, दक्षिण में सिन्धु नदी और समुद्र और पूर्व में गंगा यमुना है। पंजाब की पाँचों नदियों और सिन्धु तथा सरस्वती सब को मिलाकर सप्त नदी नाम दिया गया है। सप्त नदी की माता सिन्धु है। (म० ७ सू० ३६ ऋ०६) जिस समय गङ्गा और यमुना का भरत खण्ड में प्रवाह नहीं हुआ था उस समय सरस्वती नदो ही भारतवर्ष की सर्वप्रधान नदी थी। इसका प्रवाह अत्यन्त विस्तीर्ण और प्रबल था। ऋग्वेद के षष्ठ और सप्तम मण्डल में सरस्वती का वर्णन है। उस वर्णन से पता लगता है कि सरस्वती नदी जो आज कालचक्र से सूख गयी है और जिसके विषय में हिन्दू जनता का विश्वास है कि वह त्रिवेणी संगम या प्रयाग में गंगा यमुना में गुप्त रूप से मिली है, हिमालय से निकली थी और समुद्र तक उसका अत्यन्त विस्तीर्ण प्रवाह था। इन वेद मन्त्रों में सरस्वती नदी को १ "शत्रुओं के आक्रमण से बचाने को दुर्ग भूमि सी सुरक्षित, और सुदृढ़ लोहे के फाटक के समान कहा गया है। वेग वती होने के विषय में कहा गया है कि "रव्येवयाति" मानो रथ पर चढ़ी जाती है । तथा इस सरस्वती ने अन्य नदियों को अपने महत्व से परास्त कर दिया है, ऐसा स्पष्ट वर्णन है। -प्रोदसा धायसा सत्रएपा सरस्वती धरुण मायसी पू: । प्रवावधाना रय्येव याति विश्वा अपो महिम्ना सिन्धुरन्याः ॥ एका चेत् सरस्वती नदीनां शुचिर्मती गिरिभ्य श्रासमुद्रात् राय भरे तं पयो दुदुहे नाहुपाय । ऋ० मं० ७ सू० ६५ । शायरसाकं यशसो वावशानाः सरस्वती सप्तर्था सिन्धु माता । याः सुप्वपंत सुदुवाः सुधारा अभिस्वेत पयसा पोपयानाः ।। ऋ० मं० ६।०३ । सू० ३७ पदा मानुष प्रापयायां सरस्वत्यां देवदग्नेदिदीहि" रचेतती भुवनस्य 1 3
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