[वेद और उनका साहित्य ऊपर दो थादिवासी लुटेरों अर्थात् कृयव और अयु का हाल दिया जा चुका है जो कि नदियों से घिरे हुए किलों में रहते थे, और गांवों में रहनेवाले थार्यों को दुग्व दिया करते थे। कई जगह एक तीसरे धादि- वासी प्रबल मुग्विया का भी वर्णन मिलता है जो कि कदाचित काला होने के कारण कृष्ण कहा गया है। "वह तेज कृष्ण, अंशुमती के किनारे १० हजार सेना के साथ रहता थो । इन्द्र अपने ज्ञान से इस चिल्लानेवाले सरदार की बात जान गया। उसने मनुष्यों (मार्यो) के हित के लिए इस लुटेरी सेना का नाश कर डाला।" "इन्द्र ने कहा मैंने तेजकृष्ण को देखा है। जिस तरह सूर्य बादलों में छिपा रहता है उसी तरह वह अंशुमती के पासवाले गुप्त स्थान में छिपा है । हे मरुस ! मेरा मनोरथ है कि तुम उसमे लड़कर उसका नाश कर डालो।' "तब तेजकृष्ण अंशुमति के किनारे पर चमकता हुआ दिखायी पड़ा । इन्द्र ने बृहस्पति को थपनी सहायता के लिए साथ लेकर उस तेज का और बिना देवता की सेना का नाश कर दिया ।" (2,६६, १३-१५) दम्यु लोग केवल चिल्लानेवाले तथा बिना भापा के ही नहीं लिखे गये हैं, किन्तु कई जगह पर तो वे मुशकिल से मनुष्यों की गिनती में माने गये है। एक जगह लिखा है- "हम लोग चारों और दस्यु जातियों से घिरे हुए है। वे यज्ञ नही करते, वे किसी चीज में विश्वास नहीं करने, उनकी रीति व्यवहार भिन्न है, वे मनुष्य नहीं हैं। हे शत्रुत्रों के नाश कर्ता उन्हें मार ! दन्यु जाति का नाश कर ! (१०-२२-८) ,
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