[वेद और उनका साहित्य कवच का ऋ०१४॥ 8 सु. ३० ऋ० ५ । म४ सू० ५३ ऋ०२ में लड़ाई के हथियारों का वर्णन है। म० २ म० ३४ ऋ० ३ में सिर के सुनहरे झिलमिल का तथा स० ४ मृ. ३० ऋ० १ में कन्धों या भुजाओं के वर्णन है। म. ५ सू०५७ ऋ. २ मे तलवार या बाण को बिजली की उपमा दी है। म० ६ सू० २७ ऋ. ६ में हजारों काचधारी योद्धाओं का दर्शन है । म० ६ सू० ४७ ऋ० १० में तेज तलवारों और इसी मूक्त की २६ वीं और २७ वी ऋचायों में लड़ाई के रथों और दुन्दुभी बाजों का वर्णन है । म० ४ सू० २ ऋ० ८ में घोड़े के सुनहरी सोजों का वर्णन है। म. ७ सू. ३ ० ७ । म. सू१२ म. ७ सू. ९५ प्र. ५ मे लोहे के मजबूत किलों और म. ऋ०२० में पत्थर के बड़े बड़े नगरों का वर्णन मिलता है। म. २ सू.४१ ऋ० ५ । म० ५ सू० ६२ ऋ० ६ मैं हजारों खंभों वाले मकानों का भी वर्णन मिलता है। उपर्युक्त तमाम वर्णन इस बात पर प्रकाश डालते है कि ऋग्वेद के काल में अर्थात् पार्यों के प्रारम्भिक जीवन में प्राों ने कैसी उति कर ली थी। सम्वेद में दस्यु, दास तथा अनार्यों से भयानक युद्धों का वर्णन भी पाया है। इन युद्धों में धनुरगणों का अधिक उपयोग हुया है। घोड़ों का भी उपयोग है जिसे दस्यु नही जानते थे थौर जिससे वे डरते थे। पाठकों के मनोरंजन के लिए हम ऐसे कुछ वर्णन उद्धृत करते है। ये सब ऋग्वेद के सूक्त हैं। इन्द्रयुद्ध "जिसका आवाहन बहुतों ने किया है और जिसके साथ उसके शीप्रगामी साथी है उसने अपने बन से पृथ्वी पर रहनेवाले दस्युओं और सिम्यों का नाश करके खेतों को अपने गोरे मित्रों (मार्यों) में बाँट दिया । बन का पति सूर्य का प्रकाश करता है और जल बरसाता है (ऋ०-१००, १८) "
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