दूसरा अध्याय ] . खरगोश, और सर्प मालूम हो चुके थे। हँस, वत्तक, कोयल, कौश्रा, लवा, सारस और उल्लू भी प्राचीन आर्यों को मालूम हो गये थे। भिन्न भिन्न व्यवसाय प्रारम्भ हो रहे थे किन्तु शिल्प का प्रचार बढ़ गया था। घर, गाँव, नगर और सड़कें बनने लगी थीं । नावों द्वारा व्यापार की वस्तुओं का आयात निर्यात एवं व्यापारिक यात्राएँ होने लगीं थीं। सूत कातना, कपड़े बुनना, तह लगाना, रोम, चर्म और उन को काम में लाना वे जान चुके थे । बढ़ई का काम उन्नत दशा में था और रंगने की विद्या भी जान ली गयी थी। प्रार्य खेती की तरफ अधिक ध्यान देते थे। कुछ कुलपति परिवारों को लिये अच्छी भूमि और चराहगाह की तालाश में श्रागे को बढ़ रहे थे। युद्ध होते थे, जंगली पशु और जंगली जातियों से। हड्डी, लकड़ी, पत्थर और धातु के हथियार बनाये जाते थे। तीर-धनुष और तलवार, भाले ये हथियार बन चुके थे। धातुओं में चाँदी (रजत) सोना (हिरण्य ) लोहा (अयस) मालूम हो चुके थे। यह सीधी सादी छोटीसी प्रना अभी तक राजा का निर्माण नहीं कर सकी थी। प्रजापति या विस्पति पति ही उनका राजा था, वे उसी के आधीन रहते थे। और यह पुरुष केवल अपने बड़प्पन से बिना किसी शक्ति प्रयोग के शासन करता था। प्रजा शब्द सन्तान के अर्थ में प्रयुक्त होता था (प्रजोपश्यामि सीमन्तापायन संस्कार) खेती की तरफ ऋग्वेद के काल में अधिक ध्यान दिया गया था। यह इसी एक बात से नाहिर है कि आर्यों के लिए- बल्कि जन साधारण के लिए एक शब्द का बहुधा प्रयोग मिलता है-वह शब्द है 'चर्पन' और 'कृष्टि' जो चुप और कृप धातु से बने हैं, जिनका यर्थ ही खेती करना है । ऋग्वेद के एक सूक्त में क्षेत्र पति की स्तुति है, देखिए यह किसानो के लिये कितनी उपयुक्त है- 1-हम लोग इस खेत को 'क्षेत्रपति' की मदद से जोतेंगे। वह हमारे पशुओं की रक्षा करें। -
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