प्रथम अध्याय] र्गत है कुछ मिट्टी के लेख पट्ट मिले थे। इन में से दो टिटोनिया के राना सुविस ह्यूमर के साथ मितानी उत्तर ( मेसोपोटामिया) के राजा मितिउज्य के सन्धिपत्र थे । ये दोनों ही सन्धिपत्र मसीह से १४०० वर्ष पूर्व के हैं। इनमें दोनों देशों की तरफ से अपने अपने देवतानों से प्रार्थना की गयी है। मितानी के राजाने मित्र, वरुण, इन्द्र, नासप्तद्य (अश्विनीकुमार) इन वैदिक देवताओं की प्रार्थना की है। यह इस बात का पुष्ट प्रमाण है कि ईसा से १४०० वर्ष पूर्व मेसोपोटामियाँ वालों में वैदिक देवताओं का मान और ज्ञान था । दक्षिण मिश्र के अन्तर्गत तेलेल अर्मना में कई एक पत्र मिले हैं जो पश्चिम एशिया के राजाओं द्वारा मिश्र के फेरा को लिखे गये थे। इन राजाओं का नाम आर्य था । इससे भी ज्ञात होता है कि मसीह से पूर्व १६ । १५ वीं शताब्दी में उत्तर मेसोपोटामिया और सीरिया में वैदिक धर्म का ग्राम प्रचार था। वैविलोनिया के पूर्वस्थ कसाईट जाति के देवता का नाम सूर्य है। ईरानीय शाखा से भारतीय शाखा के भिन्न होने के पूर्ववर्ती काल में मितानी एवं अन्यान्य पश्चिम एशिया निवासी अार्यलोग श्रादि आर्य साहित्य और संकृति से दूर हो गये थे। उसी समय पार्यों का 'स' ईरानियों के 'ह' में बदलगया । इस वदले हुए 'ह' को तातार के हूण और शक भारत में प्राक्रमणों के साथ लाये । मालवे की गद्दी से विक्रमादित्य ने उन्हें खदेड़ा परन्तु उनका 'स' के स्थान पर 'ह' का उच्चारण रहगया जो समस्त मालवा-रानपूताने के उन राजपूतों में अब-तक भी है जो वास्तव में उन्हीं के वंश धर हैं। अब तो इन प्रदेशों की प्रजा में भी यह उच्चारण एक सर्व सामान्य बन गया है। चालदिया के साथ भारत के प्रार्यों की मुलाकात और उसका प्रभाव अथर्व वेद पर स्पष्ट देख पड़ता है। प्राचीन वैदिक ऋषि विश्व- कल्याणकारी देवताओं के उपासक थे । जैसाकि ऋग्वेद में दीख पड़ता है। किन्तु चालदिया निवासी अनिष्टकारी देवताओं के ही उपा-
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