[ वेद और उनका साहित्य नदिया मिलती हैं। यही समुद वर्तमान टी के नीचे और उत्तर में उत्तरीय समुद्र तक पश्चिम में कृष्ण सागर तक फैला था, जिसके भाग थाज कृष्ण सागर, कैस्पियन सागर, अरब सागर और बालकश झील है। टकी के पूर्व में एक और प्रशियाटिक भूमध्य सागर था। ऋग्वेद इन चारों समुद्रों का ही वर्णन करता है, जो अतिशय प्राचीन बात है। उस समय दक्षिणा पय एक महाद्वीप था जो ब्रह्मदेश से अफरीका के किनारे तक, तथा दक्षिण में थास्ट्रेलिया तक पीला था। ग्वेद के बाद किसी प्रबल भूकम्प से वह प्रदेश समुद्र में डूब गया और वहाँ के उच्च प्रदेश, भारतीय द्वीप समूह, प्रशान्त सागर के डीप, था-ट्रेलिया के द्वीप, तथा मडेगास्कर के डीप रह गये । उधर राजपूताना प्रदेश समुद्र में उभर याया। इसीये पंजाब निवासियों के लिये दक्षिणापथ का मार्ग खुल गया। श्रगरस्थ ऋषि का दक्षिण दिशा जाने, समुद्र पीने तया विन्ध्याचल को नीचे झुकाने की पुराण गाथा-इसी महत्व पूर्ण घटना से निर्माण हुई प्रतीत होती है। हर हालत में फारवेद काल में समसिन्धु प्रदेश (पंजाब) केवल गान्धार देश को छोडकर चारों ओर से समुद्र से घिरा हुआ था और तब गान्धार का सम्बन्ध पश्चिम एशिया और एशिया माइनर से था। दक्षिण महाद्वीप के समुद्र में डूब जाने और समुद्र से राजपूताना के ऊपर उठाने के समय में ही सम्भवतः बद महा जल-प्रलय हुया है जिसका जिक्र शतपथ ब्राह्मण और वाइविल मे भी है और जिसे मनु का जल प्रलय या न्ह का जल प्रलय कहा जाता है। अवश्य थायर्यों को फिर उस समय उत्तरीय हिमालय प्रदेशों पर चढ़ना पड़ा होगा और हिमालय पर हिम वर्षा उसी महाजल को अपरिमित्त वाप्प से सचित हुई होगी और उसके बाद ही वहाँ मनुष्यों का रहना सम्भव न होने से धीरे धीरे लोग फिर उतरने लगे होंगे । यही काल थार्यों के पांचाल, कौशल, विदेह, और अंग प्रदेशों तक बढ़ थाने का हो सकता है, पर वे बहुत धीरे धीरे बढ़े होंगे। प्राचीन सप्तसिन्धु प्रदेश में सरस्वती बड़ी प्रबल नदी थी। उसमें बड़ी
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