- . ब्राम्हणों से ब्रह्मविद्या को गोपनीय रखना इसके प्रमाण हैं जिनका वर्णन प्रसंगवश श्रागे विस्तार पूर्वक किया गया है। प्रो० अविनाशचन्द्र दास-लेक्चरर कलकत्ता यूनिवर्सिटी-अपनी ऋग्वेदिक इण्डिया, में जो भाव प्रकट करते हैं उसका सारांश यह है- " प्राकृतिक आकस्मिक परिणाम एवं भोजन, निवास, तथा ऋतु सम्बन्धी परिस्थितियों से विवश हो 'श्रार्य स्थान परिवर्तन करते तथा धूमते रहे । हिम्युग के महान परिवर्तनों के कारण वनस्पति और पशुओं को भी स्थानान्तरित होना पड़ा है। भौतिक और भौगोलिक परिस्थितियों की स्थिति में निरन्तर परिवर्तन होने के कारण प्रायों के वास्तविक स्थान का निर्णय करना कठिन है। वह स्थान सप्तसिन्धु, उत्तरीय ध्रुव, उत्तरीय यूरोप, मध्य एशिया, मध्य अफ्रिका और कोई विलुप्त महाद्वीप भी हो सकता है ऋग्वेद के कुछ मंत्रों से सप्तमिन्धु प्रदेश के जलस्थल विभाग का कुछ बोध होता है । भूगर्भ शास्त्र के सिद्धान्तों से सिद्ध होता है कि तृतीय युग में वर्तमान राजपूताना समुद्र था। साम्हर झील उसका प्रवशिष्ट अंश प्रतीत होता है और पंजाब के पूर्व में गंगा की समुद्र के समान विशाल झील थी । यह स्थान वर्तमान हरिद्वार के निकट कहीं होगा और इसे कम से कम ३-४ लाख वर्ष हुए होंगे । पार्यों ने उस प्राचीन काल में वहां अवश्य ही निवास किया है। ऋग्वेद ३-३२-१३ का सूक्त इस बात की पुष्टि करता है कि ऋग्वेद के सूक्त 'पूर्वकाल में रचे हुए' 'मध्य- काल में बने हुए, और अनन्तर बने हुए हैं । भूगर्भ से स्पष्ट है कि सप्त सिन्यु प्रदेश जो वास्तव में पंजाब था, एक समुद्र के द्वारा दक्षिण भारत से सर्वथा पृथक् था और यह समुद्र याधुनिक राजपूताना प्रदेश में था जो पूर्व में श्रासाम तक चला गया था और पश्चिम में सिन्धु नद के उस कोण तक था लहाँ उसकी सहायक
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