[ वेद और उनका साहित्य " ” 11 ) ज्ञानपर उपनिषद् ११०० से १६०० अर्वाचीन ७०० से ६.० प्रसिद्ध ऐतिहासिक सर रमेशचन्द्र दत्त वेदकाल को ईस्वी सन में २००० वर्ष से १४०० वर्ष पूर्व मानते है। इनका खयाल है कि ऋग्वेद का निर्माण तन हुआ है जब भार्य लोग सिंध की घाटी में रहते थे । वेद भाष्यकार सायण भी ऋग्वेद को सर्व-प्राचीन मानते हैं। पाश्चाथ विद्वानों का यह मत है कि ऋग्वेद का अधिकांश भाग उस समय का बना हुधा है जब कि आर्य लोग सिंधु के तौर पर बमने थे। शेष अंश की रचना पीछे से क्रमशः हुई है। विवामित्र के पुत्र मधुच्छ्द एवं दशम मण्डल के ऋषि वृन्द, फरक-प्रकाशक ऋषियों के मध्य आधुनिक मालूम पड़ते हैं। व्याकरणाचार्य पाणिनी, ममी से पूर्व चतुर्थ शनाब्दी में हुए थे यह बान अर निर्विवाद हो गयी है। यह युग सूत्रकाज़ का मध्यवनी युग था। ऋग्वेद की विशेष शाबायो को शौनक द्वारा की गयी रचना याक के निस्क्त के बाद की है क्योकि शौनक के 'वृहदेवना' मैं यास्क के मत का उल्लेख है। इसका स्पष्ट अर्थ यह होता है कि यारक, पाणिनी में लगभग १५० वर्ष बाद हुमा । सूत्र ग्रन्थों का शारम्भकाल बुद्ध के प्रथम का है क्यों कि जैन तथा बौद्वदर्शन-शास्त्र हिंदू दर्शनशास्त्र के प्रतिवाद मूलक हैं। तथा उपनिषदों के ही श्राधार पर उनकी रचना हुई है । उपनिषद तथा ब्राम्हण का परिशिष्ट श्रारण्यक का क्रमिक विकास है। दो चार सौ वर्षों में विराट् माहिप का ऐसा विकास नहीं हो सकता 1 मैक्समूलर ग्राम्हणों की रचनाकाल ईसा से ८०० से १०० वर्ष पूर्व और वेद विन्यास काल १००० से २००० वर्ष पूर्व मानते हैं परन्तु यह काल केवल निरर्थक युक्तिवाद पर निर्भर है। जर्मन विद्वान याकोयी और महामा गिलक के ज्योतिष मम्बन्धी अनुसंधान के
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