प्रथम अध्धाय ] (घ) कल्प- १ श्रौतसूत्र- [१] वैतान श्रौतसूत्र, बर्मन अनुवाद सहित, अनुवादक R. Garbe London & Startasburg 1878 २ ग्रहयसूत्र- [१] कौशिक गृहयसूत्र, संपादक I. Bloom Field New llaueu 1890 ३ परिशिष्ट- [१] अथर्ववेद परिशिष्ट संपादक G. M. Boiling & J. rom Negelien Lipzig 1909-10 [२] अथर्ववेद शान्तिकल्प Translations of the Ame- rican Philological Association Vols 35. 1901. 77 ff [३] अथर्ववेद शान्ति-कलैप Journal of the American Oriental Society 33 1913-265 ff [४] अथर्व प्रायश्चित्तानि-संपादक J.V. Negeliun Ner Haven 1915 (ङ) अनुक्रमणिका- [] अथर्ववेदीय चरणब्यूह देश और विदेश में विद्वानों के वेदों के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न मत रहे हैं । एक मत ब्रम्ह वादी है। इस मत का अभिप्राय यह है कि वेद परमात्माने सृष्टि के आदि में चार समाधिस्थ ऋपियों के हृदयों में प्रकट किये। यह सब से पुराना मत है। इसकी पुष्टि ब्राम्हण ग्रंथ, उप- निषद और धर्मसूत्रों ने की है। सायण और ऋषि दयानंद भी इसी मत के हैं। ऋग्वेद १०६०। ६, यजु० ३१ । ७, और ३४ । ५,
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