[ वेद और उनका साहित्य
- राजा वसु बोले--विनों को मध्य पशुओं से तथा फल मूलों ही
से यज्ञ करना उचित है । यज्ञ का स्वभाव ही हिमा है । यह मैंने देखा "राजा का यह भापण सुनकर ऋषियों ने उसे श्राप दिया-"तेरा अधःपात हो," इससे उसका अध:पतन हुथा । यही कथा कुछ फर्क से वायु पुराण में भी है। इससे पता लगता है कि कुछ विद्वान् लोग इन पशु वधों से अत्यन्त धृणा करने लगे थे । ये पुराण ग्यारहवीं शताब्दी के लगभग के हैं। महाभारत शान्ति पर्व (३४५) में भी ऐसी ही मजेदार एक, कथा है । "इन्द्र ने भूमि पर धाकर यज्ञ किया । जब पशु की जरूरत हुई तब वृहस्पति ने कहा "पशु के लिए घाटा लाग" यह मुनकर मांस के लालची (पशुगृद्धा) देवता बारम्बार वृहस्पति से कहने लगे कि बकरे के मांस का हवन करो। "तब ऋषि बोले-यज्ञों में बीजों से (धान्यों से) यज्ञ करना चाहिये । 'यज' बीज का नाम है । बकरा मारना सजनों का काम नहीं कृतयुग । इसमें पशु कैसे मारा जायगा?" ने सम्राद उपरिचर वसु को मध्यस्थ कर कहा कि हे महाराज ! यज्ञ बकरे के मांस का करना चाहिए या बनस्पतियों का? कृपा करके फैसला कीजिए।"राजा बोला--पहले यह बतायो, किमका क्या मत है? "पि बोले-धान्यहवन हमारा पक्ष है। और पशुधवन देवों यह श्रेष्ठ है "तब सब "वमु ने कहा तब बकरे के मांस से ही हवन करना चाहिए । इस पर पियों ने उसे प्राप दिया और उसका अध पतन हुथा।"