नवा अध्याय ] परिणाम निकाला गया है कि दोनों ही को मांस न खाना चाहिये। फिर भी याज्ञवल्क्य कहते हैं कि “यदि नर्म हो तो हम उसे खा सकते हैं।" (१क) २-... . सधेन्वै चानडुहृश्व नाश्नीयाद्ध न वनडही वा इद सर्व विनितस्ते देवाअब्रुवन् धेनवनदुहौ वा इद, सर्व विनितो हन्त यदन्येषां वयसा वीयं तद्धन बनडुयोर्दधामति तदुहो चाच याज्ञवल्क्यो श्नास्येवाह ससले चेद्वनीति (श० ३।१२।२१) शतपथ ब्राह्मण ( १३७८) में पशु को यज्ञ में बलिदान देने के विषय में एन अद्भुत वाक्य है। पहले देवताओं ने मनुष्य को वलि दिया । जब वह बलि दिया गया तो यज्ञ का तब उसमें से निकल गया और उसने घोड़े में प्रवेश किया । तब उन्होंने घोड़े को बलि दिया। जब घोड़ा बलि दिया गय तो यज्ञ का तत्व उसमें से निकल गया और उसने बैल में प्रवेश किया। तब उन्होंने वैल को बलि दिया । जब वैल बलि दिया गया तो यज्ञ का तत्व उसमें से निकल गया । और उसने भेड़ में प्रवेश किया। जब भेड़ की बलि दी गयी तो यज्ञ का तत्व उसमें से भी निकल कर बकरे में प्रवेश हो गया । तब उन्होंने बकरे को बलि दिया। जब बकरा बलि दिया गया तो यज्ञ का तत्व उसमें से भी निकल गया और तब उसने पृथ्वी में प्रवेश किया। तब उन्होंने पृथ्वी को खोदा और उसे चावलों और जौ के रूप में पाया। लो मनुप्य इस कथा को जानता है उसे (चावल धादि) का द्रव्य देने से उतना ही फल होता है जितना कि इन पशुओं के बलि करने से ब्राह्मण ग्रन्यों के बाद सूत्र काल में वैदिक वलिदानों के संबंध की रीतियों के विस्तारपूर्वक वर्णनों के संक्षिप्त अन्य लो बनाये गये वे श्रौत- Far for 2 m 1
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