पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१९७

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नवा अध्याय ] - मोहर वाँधी। तब जनक ने उन सभों से कहा " ब्राह्मणो ! तुममें जो सब से बुद्धिमान हो वह इन गौओं को हाँक ले जाय । इस पर उन ब्राह्मणों का साहस न हुया ! पर याज्ञवल्क्य ने अपने शिष्य से कहा- वत्स ! इन्हें हाँक कर घर ले जायो।" उसने कहा - सामन की जय । " और वह उन्हें हाँक कर घर ले गया । इस पर ब्राह्मणों को बड़ा क्रोध श्राया । वे घमण्डी ब्राह्मणों से प्रश्न पर प्रश्न पूछने लगे, पर याज्ञवक्य ने अकेले उन सब का मुकाबला किया । होत्री, अस्वल, जारतकरव, भारतभाग, मृत्युलाहचार्याम, उपस्त- चाक्रायन, नेहाल कौशिनतक्रय उद्दालक श्रारुणी, तथा अन्य लोग याज्ञ. बल्क्य से प्रश्न पर प्रश्न करने लगे। पर याज्ञवल्क्य ने सब को निरुत्तर किया। " गार्गी खड़ी हुई और बोली- हे ब्राह्मण तू क्या सब से विद्वान् याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया-“ मुझे गौयों की आवश्यकत्ता थी- मैंने उन्हें ले लिया " गार्गी ने कहा-" हे याज्ञवल्क्य ! जिस प्रकार कि काशी अथवा विदेहों के किसी योदा का पुत्र अपने ढीले धनुप में डोरी लगाकर अपने हाथ में दो नोकीले-शत्रु को वेधनेवाले तीर लेकर युद्ध करने खड़ा होता है उसी प्रकार में भी दो प्रश्नों को लेकर तुमसे लड़ने खड़ी होती हूँ, मेरे प्रश्नों का उत्तर दो। ये वर्णन उन प्राचीन मंत्र दृष्ट्व-ऋषियों थौर इन यज्ञों के व्यवसाई पुरोहितों में नो अन्तरःहै इसे स्पष्ट करते हैं । इन्हीं याज्ञवल्क्य के दो स्त्रियाँ थीं। यह बात बिल्कुल साफ है कि इन लोगों में यद्यपि विद्या और योग्यता थी तथापि इनका नैतिक पतन हो चुका था। और ये श्रीमंत- और विलासी हो गये थे । बड़े-बड़े यज्ञ प्रायः वसंत ऋतु में चैत्र वैशाख के महीनों में होते थे। ऐतरेय ब्राह्मण के चौथे भाग को पढ़ने से इस विषय का अधिकार स्पष्टी