वेद और उनका साहित्य "तुम लोग कुछ नहीं जानते । और वह रथ पर चढ़ कर चला गया।" ब्राह्मणों ने कहा- इस राजन्य ने हमारा अपमान किया है।" याज्ञ- वल्क्य रथ पर चढ़ कर राजा के पीछे गया, और उससे शंका निधारण की। तबसे जनक बाहारण कहा जाने लगा ।" वास्तव में इन निरर्थक अग्निहोत्रों का वर्णन ऐसा विस्तृत हो गया था और क्रियाएं इस तरह बढ़ गयी थीं कि याज्ञवल्क्य जैसे ब्राह्मण को भी याद न रहीं-शायद इसी गड़बड़ाध्याय को मिटाने के लिए उसे शुक्ल यजुवेंद का सम्प्रदाय बनाना पड़ा, और उसका स्वतन्त्र ब्राह्मण शतपथ बनाने में अपना तमाम जीवन नष्ट करना पड़ा। इन पुरोहितों को धीरे धीरे दक्षिणा का लालच बढ़ रहा था और घे अपने सादा तपस्वी जीवन से पतित हो रहे थे। छान्दोग्य उपनिषद् (५११७.१९ । ७ । २४) शतपथ ब्राह्मण (३ ।। ४८) तैत्तिरीय उपनिषद् (१।५। १२ श्रादि) में धन, सोना, चांदी, जवा- हरात, घोड़ा, गाड़ी, गाय, खच्चर, दास दासी, खेत, घर और हाथियों का जिक्र है । यज्ञो में सोना दान करना उचित समझा जाता था। चाँदी के दान देने का बहुत ही निषेध था । ब्राह्मण ग्रन्थों में इसका भी अनोखा कारण बताया जाता है। "जब देवताओं ने अग्नि को सौपा हुया धन उससे फिर माँगा तो अग्नि रोई-और उसके जो आँसू बहे-वे चाँदी हो गये। इसी कारण यदि चाँदी दक्षिणा में दी जाय तो उस घर में रोना मचेगा।" और एक घटना का हाल सुनिये:- (जनक विदेह ) ने एक अश्वमेघ यज्ञ किया । जिसमें याज्ञिकों को बहुन सी दक्षिणा दी गयी। उसमें कुरुनो और पांचालों के ब्राह्मण थाये थे। जनक यह जानना चाहते थे कि उनमें से कौन अधिक पढ़े हैं। प्रत. एवं उन्दोंने हजार गौधों को घिरवाया और प्रत्येक के सींगों मे १८ .
पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१९६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।