पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१८३

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नवा अध्याय ] वर्णन है, इसमें चारों आश्रमों और विशेष कर वानप्रस्थियों के नियम दिये गये हैं, क्योंकि चैखानस लोग वानप्रस्थही होते थे । यह तैत्तिरीय सम्प्रदाय की ही एक सब से छोटी शाखा प्रतीत होती है। हमारे विचार में इनके अतिरिक्त अन्य भी बहुत से धर्मसूत्र रहे होंगे, जिनका कालभ्रम से अब कुछ पता नहीं चलता, क्योंकि प्रायः सभी वर्तमान स्मृतियाँ धर्मसूत्रों को ही श्लोक रूप में तोड़ मरोड़ कर बनाई गई हैं; हमने वशिष्ट, श्रापस्तम्ब और बौधायन धर्मसूत्रों को इनकी स्मृतियों से मिलाकर स्वयं इस बात का अनुभव किया है। शुल्बसूत्र धर्माचरण में सहायता देनेवाना एक और प्रकार का भी सूत्र साहित्य है, उसे शुल्ब सूत्र कहते हैं । प्रापस्तम्ब कल्पसूत्र का तीसवाँ अर्थात् अन्तिम प्रश्न आपस्तम्ब शुल्व सूत्र ही है । इन प्रश्नों में वेदी, यज्ञकुंड थादि की रचना के प्रकार होते हैं । इनमें रेखा गणित (Geometry ) के बड़े भारी ज्ञान का पता लगता है और वास्तव में भारतीय गणित शास्त्र [ Indian Ma- thematics ) पर यही सब से प्राचीन ग्रन्थ है। इसका सम्बन्ध कृष्ण- यजुर्वेद से है। वौद्धायन मुल्ब सूत्र भी कृष्ण यजुर्वेद का ही ग्रन्थ है शुल्क यजुर्वेद का सम्बन्ध कात्यायन शुल्ब सूत्र से है। संभवतः हिरण्यकेशी कल्पसूत्र के अट्ठाईसहें और उनतीस अर्थात् अन्तिम दो अध्यायों में हिरण्यकेशी शुल्ब सूत्र हैं। संभव है कि इसके अतिरिक्त भी बहुत से शुल्व सूत्र हो किंतु उनका कुछ भी पता नहीं लग सका।