[वेद और उनका साहित्य थाट के विरुद्ध विवाह के प्रकार ही स्वीकार किये गये है, कुमारिल ने लिखा है कि उसके समय में वाशिष्ठ धर्मशास्त्र बड़ाभागे प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता था, और इसको केवल ऋग्वेदी ही पढ़ने थे, उसका अभि- माय इसी वर्तमान ग्रन्थ से था। अन्य किसी से नही, क्योंकि कुमारिल के उद्धत धेश वर्तमान छपे हुए संस्करण में पाये जाने हैं, यह समझा जाना है कि यह अन्य उत्तरी भारत का है, वाशिष्ठ गौतम का उद्धरण देता है, उसके अंश मनु के एक प्राचीन सूत्र में एकत्रित किये गये हैं, इसके अनिरिक मनुस्मृति में भी बशिष्ठ के ऐसे अंश हैं, जो छपे हुए ग्रन्थ में मिलते है, अतएव मनु का ग्रन्थ गौतम के बाद का है, यह संभव है कि ऋग्वेद से सम्बन्ध रखने वाले इस उत्तर के सूत्रमन्ध का काल ईसवी सन से कई शताब्दी पूर्व हो। कुन धर्मम्पूत्रों के केवल अवतरण ही मिलते हैं, इनमें सबसे प्राचीन वह है जिनका वर्णन दूसरे धर्मपुत्रों में पाया है, इनमें सब से थधिक मनु के सूत्र में उत्पन होती है, क्योंकि उसका सम्बन्ध प्रसिद्ध मानवधर्म शास्त्र से है, वशिष्ठ मैं उसके अनेक अवतरणों में से मनु के संस्कार पृष्ठ में छै वैसे के पैसे ही है, यह बिखरे हुए अंश ही संभवतः मानवधर्मसूत्र हैं, जिनके श्राधार पर मानव धर्म शास्त्र बनाया गया है जिमका वर्णन हम पृथव अध्याय में करेंगे । शंख और लिखित ( ये दोनों भाई थे) के धर्मशास्त्र के कुछ गद्य- पद्धान्मक अंश मिलते हैं, यह तो न्याय विभाग में सूनि के समान बन गये थे। इस ग्रन्थ का उद्धरण जो कि संभवतः कानून के सभी विषयों का एक बड़ा भारी ग्रन्थ होगा पाराशर ने प्रमाण रूप में उपस्थित किया है। कुमारिल की मम्मति में इसका मम्पन्ध वाजसनेय मनाय से था। बैरवानस धर्मसूत्र, जो कि चार प्रश्नों में लिखा गया है ईसा की तीसरी शताब्दी से पूर्व का नहीं हो सकता। यह वास्तव में यह धर्मसूत्र नहीं है, क्योंकि धार्मिक विषयों की अपेक्षा इसमें गृह्य धर्म का ही विशे
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