नवा अध्याय] इससे वैदिक भारतीय जीवन के साधारण सश्य का पूर्ण चित्र मिल जाता है। इन गृह्यसूत्रों में ४० संस्कारों का वर्णन है । गर्भ से लगाकर विवाह तक के १८ संस्कार शारीरिक कहे जाते हैं और शेष बाईस एक प्रकार के यज्ञ रूप हैं। इनमें से पाठ और संस्कार भी गृह्य संस्कार हैं जिनमें पाँच महायज्ञ और तीन पाक यज्ञ हैं और अवशेष श्रौत संस्कारों से सम्बन्ध रखते हैं । इन बातों के अतिरिक्त भी इनमें और बहुत सी बातें हैं । वर्षा के प्रारम्भ में नाग को भेंट देना, गृह निर्माण और नूतन गृह प्रवेश के संस्कार करना-इस सम्बन्ध में भूमि और निर्माण के विस्तृत नियम दिये हुए हैं । उदाहरणार्थ, पश्चिम की ओर को द्वार बनाने का निषेध किया गया है। लकड़ी या बाँस के मकान के बन चुकने पर पशु की बलि का वर्णन है। पशुओं के सम्बन्ध में अन्य भी अनेक रीतियाँ वर्णित हैं। उदाहरणार्थ जाति के हित के लिए साँड छोड़ा जाना, कृषि सम्बन्धी रीतियाँ पृथक हैं । उदाहरणार्थ, कृषि से उत्पन्न हुए प्रथम फल को देने के संबंध की रीति, दुःस्वप्न, अपशकुन और रोग होने पर भी विशेष कृत्य करते बतलाये गये हैं । अन्त्येष्टि संस्कार में चिता पर गौ या बकरी भी जलाना कहा है, श्राद्ध का वर्णन खूब विस्तार से किया गया है, यह गृह्य सूत्रों के विषय का संक्षिप्त परिचय है। धर्म सूत्र सूत्र साहित्य की तीसरी शाखा धर्मसूत्र हैं, जिनमें दैनिक जीवन के नियमों का वर्णन है, यह धर्मशास्त्र (कानून या Law ) पर सब से प्राचीन आर्य-अन्य हैं, धर्म सूत्रों का भी वेदों की शाखाओं से सम्बन्ध है, किन्तु इस सम्बन्ध में केवल तीन धर्मसूत्रों का ही नाम लिया जा सकता है । और वह तीनों कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा के हैं, किन्तु यह मानने के पाने---- ने हुए अन्य ग्रन्थों का भी
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