[ वेद और उनका साहित्य - गोभिल गृह्यसूत्र का ही परिष्कृत रूप है । जैमिनीय गृह्यसूत्र भी सामवेद का ही है। शुक्ल यजुर्वेद के गृह्य पारस्कर सूत्र हैं और कात्यायन गृह्य सूत्र हैं, पारस्कर कातीय या वाजसनेय गृह्य सूत्र भी कहते हैं । कात्यायन गृह्यसूत्रसे इसका इतना घनिष्ट सम्बन्ध है कि इसका उद्धरण बार बार उस रचयिता के नाम से हो जाता है, याज्ञवल्क्य के धर्मशान पर भी इसका भारी प्रभाव पड़ा है, इसमें तीन काण्ड है। कृष्ण यजुर्वेद के सात गृह्यसूत्रों में से अभी तक केवल तीन ही छुपे हैं । श्रापस्तम्प गृह्य सूत्र आपस्तम्ब पल्पसूत्र का छब्बीस धौर सत्ता- ईसवौं अध्याय है । हेरण्यकेशी गृह्यसूत्र हेरण्यकेशी कल्पसूत्र का १९ और चीसवाँ अध्याय है। बौधायन और भारद्वाज के गृह्य मूत्रों के विषय में कुछ भी विदित नहीं है । मानव गृह्य सूत्र का मानव श्रौतसूत्रों से इतना घनिष्ट सम्बन्ध है कि गृह्य में अनेक अनेक बार श्रीत के ही श्रव. तरणों को दोहराया गया है। यह बात वही विचिः है कि इस सूत्र का विनायक पूजन अन्य किसी सूत्रकार को विदित नहीं है। याज्ञवल्क्य धर्मशास्त्र में इन सशों को फिर दिया गया है, जहाँ चार विनायकों को एक विनायक, वर्तमान गणेश का रूप दे दिया गया है, मानव से ही मिलता जुलत्ता काटक गृध सूत्र है। यह केवल विषय प्रम में ही नहीं मिलता किन्तु अनेक स्थलों पर शब्द शब्द भी मिलता है। इसका विष्णु धर्मशास्त्र से सम्बन्ध है । वैवानप गृय सूत्र एक विस्तृत अन्ध है । इम की रचना प्राचीन ढंग की है। वाराह गृह्य सूत्र भी मैत्रायनीय सम्प्रदाय का एक बाद का ग्रन्थ है। अथर्ववेद का सम्बन्ध कौशिफ गृह्यसूत्र से है। यह केवल गृह्यसूत्र ही नहीं है, क्योंकि गृहस्थ सम्बन्धी संस्कारों का वर्णन करने के साथ- साथ इसमें कुछ सौंत्रिक और अधर्ववेद को कुछ विशेष क्रियाएँ भी है। -
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