[ वेद और उनका साहित्य दिन तय होनेवाले यज्ञ)ौरअन्तके दो में सत्रों (बारह दिन तक होनेवाले ज्ञों)का वर्णन है। लाट्यायन सूत्र कौथुमस शाखा का है, सशक सूत्र के समान यह सूत्र भी पूर्ण रूप से पचविंश ब्राह्मण से सम्बन्ध रखता है, इसने प्राहाण बहुत से उद्धरण देकर उसके प्राचार्य शाडिल्य, धनजय और शांडिल्या यन का भी उल्लेख किया है, इनके अतिरिक्त लाभ्यायन ने बहुत मे याचार्यों के नाम लिये हैं । उदाहरणार्थ उसके अपने प्राचार्य, प्राय कल्प, गौतम, मौचीवृती, ख्यालम्भी, कौलप, वार्षगण्य, भारिडतायन, लामकीयन, राणायनीपुत्र, शारयायनी, शालकायनी श्रादि । इस सूब प्रतीत होना है कि इसके समय में शूद्र और निषादों की परिस्थिति इतनी खराब नहीं थी जैसी बाद को हो गई । उस समय उनको यज्ञ भवन यज्ञभूमि के पास तक थाने की अनुमति थी, लाव्यायन सूत्र में दस प्रपाठक है, जिनमें से प्रथम सात प्रपाठकों में सभी प्रकार के सोमभागों के साधारण नियम दिये गये हैं। याठवें प्रपाठक और नौवें प्रपाठक के कुछ भाग में एकाह यज्ञ का वर्णन है, नौवें प्रपाठक के अवशिष्ट भाग में श्रहीन यागों का दौर दसवें में सत्रों का वर्णन है। दाह्मायण सूत्र राणायनीय शाखा है, राणायन वंश वशिष्ठ से उत्पन्न हुधा है, अतएव इस सूत्र को वशिष्ठ स्य भी कहते हैं, इसके विषय सादि का अभीतक विशेष पता नहीं चल सका। शुक्ल यजुर्वेद का संबंध कायायन श्रीत सूत्र से है, इसके छब्बीस अध्यायों में पूर्ण रूप से शतपथ ब्राह्मण के यज्ञक्रम का अनुसरण किया गया है, इसमें बाईसवें से तेईसवें अध्याय तक में सामवेद के यज्ञों का वर्णन है, अपने परिष्कृत ढंग के कारण यह ग्रन्थ सूत्रकाल के अन्त का प्रतीत होता है। कात्यायन धौत सूत्र के प्रथम अठारह अध्याय विपय में शतपथ ब्राह्मण के प्रथम नौ काण्डों से मिलते जुलने हैं, नोर्वे अध्याय में
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