[ वेद और उनका साहित्य पगुरुशिष्य ने उसके दस उद्धरण क्थेि हैं । वृह देवता सभी अनुक्र- मग्रियों से बड़ा है, उसमें १२०० श्लोक ही है, केवल कहीं मिष्टुपों से काम लिया गया है। यह ऋग्वेद के श्रष्टकों के समान पाठ अध्यायों में विभक्त है, इसका उद्देश्य ऋग्वेद के क्रम को निश्चित रखते हुए प्रत्येक मंत्र का देवता बतलाना है। किन्तु अनेक कथानों के कारण इसका महत्व और भी अधिक बढ़ गया है, यह यास्क के निरुक्त के आधार पर बना है, इसके अतिरिक्त इसके रचयिता ने यास्क, भागुटी और श्राश्व- लायन प्रादि अनेक ऋषियो का उल्लेख करते हुए निदान मून का भी उल्लेख किया है, इसमें कुछ ऐसी खिलायों का भी उल्लेख किया है जो प्राग्वेद में नहीं है। इन से कुछ बाद की कात्यायन की सर्वानुक्रमणी है, यह सूत्र ढंग का बड़ा भारी अन्य है, छापे में भी इसमें लगभग ४६ पृष्ट हो गये है। बारह खयडों की इसमें भूमिका है, जिनमें से नौ खण्डो में केवल वैदिक छन्दों का वर्णन है, जो वैदिक प्रतिशाख्य के वर्णन से मिलता-जुलता है, शौनक का दूसरा छन्दबद्ध अन्य विधान है, जिसमें ऋग्वेद के मंत्रों के पाठ से या केवल एक मंत्र के पाठ से होनेवाले भाश्चर्यजनक प्रभाव का वर्णन किया गया है। सामवेद के परिशिष्ट की दो अनुक्रमणी हैं एक प्राप, दूसरी दैवत । जिनमें कम से सामवेद की भेंगेय शाखा के ऋषियों और देवताओं को गिनाया गया है, उनमें यास्क, शौनक, अश्वलायन और दूसरे ऋषियो का उल्लेख किया गया कृष्ण यजुर्वेद की दो अनुक्रमणी है, प्रात्रेय शाखावाली में दो भाग है, जिनमें से प्रथम गद्य में तथा द्वितीय श्लोकों में है। काठकों की धारा- यणीय शाखा की अनुक्रमणी में भिन्न-भिन्न मन्त्रों के रचयिताओं की गणना की गयी है, कहा जाता है कि अग्रि ने इसको बनाकर लौमाची को दे दी।
पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१७०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।