६२ [चंद चौर उनका साहिल - को पृथक् पृथक् कर देते थे; वह चारों पदजाती को पहिले से ही जानत थे, यद्यपि इनका नाम, थाख्यात, उपसर्ग और निपात सबसे पहिले यास्क ने वर्णन किया है, भंभवनः शब्दों को इस प्रकार पृथक् करने से इस शास्त्र का नाम व्याकरण पडा, भाषा सम्बन्धी छानबीन की साक्षी ब्राह्मणों में भी पाई जाती है, क्योंकि उनमें भी विभिन्न व्याकरण सम्बन्धी पारिभाषिक शब्द मिलते है, उदाहरणार्थ, वर्ण (अक्षर), वृषन (पुल्लिग), वचन और विभक्ति, श्रारण्यकों, उपनिषदों और मुत्रों में यह उल्लेख और भी अधिक पाये जाते है, किन्तु यास्क के निरुक्त से पाणिनि से पूर्व के व्याकरण का खूब पता चलता है । यास्क के पूर्व व्याकरण का अध्ययन खूब हो चुका होगा, क्योंकि अपने से पूर्व बोस थाचार्यों के नाम गिनाने के अतिरिक्त एक उत्तरीय और एक पूर्वीय सम्प्रदाय का उल्लेख करता है, उसके बतलाये हुए ALAT में से शाकटायन, गार्य और शाकल्प के नाम बहुत महरवशाली हैं, यास्क के समय चैयाकरणों की शब्द और उसकी रचना का वर्णन ज्ञात हो गया था, वह पुरुष वाचक रूप और काल बाचक रूप चलाने ही साथ कृत् और वद्धित् प्रत्ययों को भी जान गये थे, याफ शब्दों के धातुओं से बनने के सिद्धान्त पर रोचक विवाद किया है जिसका वह स्वयं भी अनुगामी है, वह कहता है कि गाय और कुछ दूसरे वैयाकरणी इस सिद्धान्त को सामान्य रूप से तो मानते हैं किन्तु वह सभी अंश शब्दों को धातुधों से निकनेवाला नहीं मानते, वह उनकी युक्तियों का खण्डन करता है, पाणिनि का सारा व्याकरण भी शाकटायन की धातुओं से सभी संज्ञा शब्दों के निकने के सिद्धान्त पर खड़ा हुया है, पाणिनि के व्याकरण में वैदिक रूपों के भी सैंकडों नियम हैं, किन्तु यह प्रधान विषय में अपवाद रूप है, क्योंकि पाणिनि का प्रधान विषय संस्कृत भाषा है, वर्तमान साहित्य पाणिनि की भाषा के आधार पर ही बना है, यद्यपि पाणिनि सुत्रकाल के मध्य में हुआ है तथापि उसके समय से वेदों से भागे का साथ ,
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