सातवा अध्याय ] . जोकि बुद्धिमती, गुणवती और विद्वान् स्त्री थी, इस बड़े सिद्धान्त जे स्वीकार किया और समझा और वह इसकी कदर संसार की सब सम्पत्ति से अधिक करती थी। बृहदारण्यक उपनिषद हमारा दूसरा उद्धृत भाग भी उसी उपनिषद् से है और यह विदेहों के राजा जनक के यहाँ परिडतों की एक बड़ी सभा से सम्बन्ध रखता है- लचक विदेह ने एक यज्ञ किया जिसमें (अश्वमेध के ) याज्ञिकों को बहुत सी दक्षिणा दी गयी। उसमें कुरुषों और पांचालों के ब्राह्मण आये थे थार जनक यह जानना चाहते थे कि उनमें से कौन अधिक पड़े हैं । अतएव उन्होंने हजार गौत्रों को दिखाया और प्रत्येक के सींघों में (सोने के) दस पद बाँधे । तब जनक ने उन सभों कहा पूज्य ब्राह्मणों, याप लोगों में जो सब से बुद्धिमान हो वह इन गौओं को हाँके । इसपर उन ब्राह्मणों का साहस न हुआ, पर याज्ञवल्क्य ने अपने शिष्य से कहा 'मेरे प्यारे, इन्हें हाँक लेजायो' उसने कहा 'सामन् को जय !' और उन्हें हाँक लेगया। इस पर ब्राह्म ह्मणों ने बड़ा क्रोध किया और वे घमंडी याज्ञवल्क्य से प्रश्न पर प्रश्न पूछने लगे। पर याज्ञवल्क्य अकेले उन सब का मुकाबला करने योग्य थे । होत्रो अस्वल, जारकरव भारत भाग, भुज्यु लाह्यायनि, उपस्त चाक्रायन, केहाल कौशनितकय उद्धालक आरुनि, तथा अन्य लोग याज्ञवल्क्य से प्रश्न पर प्रश्न करने लगे, पर याज्ञवल्क्य किसी बात में कम नहीं निकला और सब पंडित एक-एक करके शान्त हो गये। इस बड़ी सभा में एक व्यक्ति ऐसा था जो उस समय की विद्या और पाण्डित्य में कम नहीं था, क्योंकि वह व्यक्ति एक स्त्री थी (यह एक सी अपूर्व बात है जिससे उस समय के रहन सहन का पता-गता है। " 3
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